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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३०२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि ४ सेर दही और आधा आधा सेर तेल और घी । इसे शहदमें मिलाकर खानेसे पित्तज अरुचि को एकत्र मिलाकर उसमें वह चूर्ण मिलाकर | नष्ट होती है। मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश जल जाय तो | (मात्रा-६ माशे से ९ माशे तक । ) उसे एक मज़बूत हांडीमें भरकर उसका मुख बन्द । (३९४५) पिप्पल्याटिचर्णम (२) करके उसपर ३-४ कपर मिट्टी कर दें और उसे (वृ. नि. र. । कास.) चूल्हे पर चढ़ाकर इतनी देर पकायें कि जिससे समस्त ओषधियोंकी भस्म हो जाय। इसके बाद हांडी पिप्पली तवराजश्च तवक्षीरं त्रयं समम् । के स्वांग शीतल होने पर उसमें से औषधको मधुसपियुतं भुक्तं पित्तकासविनाशनम् ।। निकाल कर पीस लें। ___ पीपल, तवराज ( यवासशर्करा-तुरञ्जबीन ) और बंसलोचन समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। ___इसे १ पल मात्रानुसार घीमें मिलाकर पियें इसे शहद और धीमें मिलाकर चाटने से और पच जाने पर मधुर (दूध भात इत्यादि ) पित्तज खांसी नष्ट होती है। भोजन करें। (३९४६) पिप्पल्यादिचूर्णम् (३) यह क्षार वातकफज रोग और विष विकारों ( वा. भ. । कल्प. अ. ३ ) को नष्ट करता है। पिप्पलीदाडिमक्षारहिङ्गशुण्ठयम्लवेतसान् । ( व्यवहारिक मात्रा-१ से ३ माशे तक । ससैन्धवान् पिबेन्मथैः सर्पिपोष्णोदकेन वा ॥ अनुपान-उष्ण जल ।) प्रवाहिकापरिस्रावे वेदनापरिकर्त्तने ॥ (३९४४) पिप्पल्यादिचूर्णम् (१) पीपल, अनारदाना, जवाखार, हींग, सेठ, (ग. नि. । अरुचि.) अमलबेत और सेंधानमक बराबर बराबर लेकर पिप्पल्यामलकं मूर्वा चन्दनं कमलोत्पलम। | चूर्ण बनावें । उशीरं पद्मकं रोधमेला लामजकं तथा ॥ इसे मद्य, धी अथवा उष्ण जलके साथ एतानि समभागानि क्षौद्रेण सह संसृजेत् । सेवन करनेसे वमन विरेचनके मिथ्यायोगसे द्विगुणां शर्करां दत्त्वा पित्तजायामथारुचौ ॥ उत्पन्न हुई प्रवाहिका, अतिसार, शूल और कतर नेके समान वेदना नष्ट होती है। पीपल, आमला, मूर्वा, सफेद चन्दन, कमल, नीलोत्पल, खस, पद्माक, लोध, इलायची और (३९४७) पिप्पल्यादिचूर्णम् (४) लामज्जक (खस भेद-पीला खस) समान भाग | (ग. नि.; वृ. नि. र.; . मा. । गुल्मा.) लेकर कूट छानकर चूर्ण बनावें और फिर उसमें | पिप्पली पिप्पलीमूलं चित्रकाजाजिसैन्धवम् । उस सबसे २ गुनी खांड मिला लें। पीतं तु सुरया हन्ति गुल्ममाशु सुदुस्तरम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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