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[२८४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि (३८५४) पुनर्नवादिस्वेदः (२) पुनर्नवानिम्बपटोलशुण्ठी(वं. से. । शूला.)
तिक्तामृतादाय॑भयाकषायः । पुनर्नवैरण्डयवातसीभिः
सर्वाङ्गशोथोदरकासशूल___कार्पासजैरस्थिभिरारनालैः।
श्वासान्वितं पाण्डुगदं निहन्ति ॥ स्विभैरमीभिर्भिषजा च कार्यः
पुनर्नवा ( साठी ), नीमकी छाल, पटोलपत्र, स्वेदः समीरार्तिहरो नराणाम् ॥
सांठ, कुटकी, गिलोय, दारुहल्दी और हर्रका काथ पुनर्नवा ( साठी ), अरण्डकी जड़, जौ,
सींगशोथ, उदररोग, खांसी, शूल, श्वास और अलसी और कपासके बीजों ( बिनौले ) की गिरी |
पाण्डुको नष्ट करता है। को कांजीमें पकाकर उसकी भाफ देनेसे वातज |
(३८५७) पुरीषविरजनीयकषायदशक: शूल नष्ट होता है।
(च. सं. । सू. अ. ४)
जम्बुशल्लकीत्वक्कच्छुरामधुकशाल्मलीश्रीवेष्टक(३८५५) पुनर्नवायोगः
भृष्टमृत्पयस्योत्पलतिलकणा इति दशेमानि (रा. मा. । विषरो.)
पुरीपविरजनीयानि भवन्ति । यः पिबति पुष्यदिवसे जलपिष्टं सितपुननेवा- जामनकी छाल, शल्लकीकी छाल, कौच के
मूलम् । | बीज, मुलैठी, संभलकी छाल, श्रीवेष्ट, दग्ध मृत्तिका, तत्सविधौ न वर्षे वृश्चिकभुजगाः प्रसर्पन्ति ॥
बिदारीकन्द, नीलोत्पल और तुषरहित तिल । पुष्य नक्षत्र में सफेद पुनर्नवा ( साठी-बिस
इन दश चीजेोंके समूहको 'पुरीषविरजनीय खपरा) की जड़को उखाड़कर पानीमें पीसकर
कषायदशक ' कहते हैं। ( इनके सेवन से मल पीनेसे एक वर्ष तक सांप और बिच्छू पास तक | दोष रहित हो जाता है।) नहीं फटकते ।
(३८५८) पुरीषसंग्रहणीयकषायदशकः (३८५६) पुनर्नवाष्टकम्
(च. सं. । सू. अ. ४) (4. से., भै. र. । शोथ.; ग. नि.; वृ. नि. र.; प्रियङ्गवनन्ताम्रास्थिकालोध्रमोचरसबं. से. । पाण्डु.; यो. र.; च. द. । उदराः; समाधातकीपुष्पपमापबकेशराणीति र. र. । शोथ.; . मा. । शोथोदर.; वृ.
दशेमानी पुरीषसंग्रहणीयानि भवन्ति । यो, त. । त. १५०; यो. र. पाण्डु.;
फूलप्रिया, अनन्तमूल, आमकी गुठली, यो. र. । उदरा.)
अरलकी छाल, लोध, मोचरस, मजीठ, धायक फूल, १ योगतरङ्गिणीमें इसका माम " वृहत्पुन
पभा और कमलकेसर । यह दश ओषधियां पुरीष मेवादि" लिखा है।
संग्रहणीय अर्थात् मलको बांधनेवाली हैं।
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