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[२४१] भारत-भैषज्य रत्नाकर।
[पकारादि शोथे कफोत्थेऽक्षसमं समूत्रं
। (३८४६) पुनर्नवादिकाथः (२) कार्थ पिषेद्वाप्यथ चैव तेषाम् ॥
(वृ. नि. र. । उदर.) पुनर्नवा ( साठी )की जड़, सोंठ, निसोथ, पुनर्नवादारुमहौषधाम्बु गिलोय, अमलतासका गूदा, हर्र और देवदारु ।। गोमूत्रसिद्धः श्वयथु निहन्ति । सब चीजें समान भाग लेकर सबको गोमत्रके | तथा कणाशुण्ठिगुडोत्थचूणे साथ पीसकर उसीके साथ १। तोलेकी मात्रानुसार
शोफामशूलनमजीर्णहारि॥ पीनेसे अथवा इन चीजोंका काथ पीनेसे कफज |
पुनर्नवा (साठी), देवदारु, सेठ और सुगन्धशोथ नष्ट होता है।
बाला । इनको गोमूत्रमें पकाकर सेवन करनेसे ( व्यवहारिक मात्रा-६ माशे ) ।
शोथ नष्ट होता है।
पीपल, सोंठ और गुड़ । इनका चूर्ण सेवन (३८४४) पुनर्नवादिकषायः
करनेसे सूजन, आम, शूल और अजीर्णका नाश (ग. नि. । ज्वरा.)
होता है। पुनर्नवा गुडची च त्रायन्त्येरण्डवासकम् ।
। (३८४७) पुनर्नवादिकाथः (३) पञ्चमूल्येकतश्चात्र गोमूत्रेण श्रुतं शुभम् ॥ .
(वृ. नि. र. । उदर.) नश्यत्यनेनाभिन्यासः संज्ञा चास्योपजायते ॥ । पुनर्नवामृतादारुपथ्यानागरसाधितः।
पुनर्नवा ( साठी ) गिलोय, त्रायमाना, अर- गोमूत्रगुग्गुलुयुतः काथः शोथोदरापहः॥ ण्डकी जड़, बासा और पञ्चमूल (बेल, खम्भारी, | साठी, गिलोय, देवदारु, हर्र और सांठके अरलु, पाठा, अरणी ); इनको गोमूत्रमें पकाकर क्वाथमें गोमूत्र और गूगल मिलाकर सेवन करनेसे पीनेसे अभिन्यास सन्निपात नष्ट होता और रोगी | शोथोदर नष्ट होता है । होशमें आ जाता है।
(३८४८) पुनर्नवादिकाथः (४) (३८४५) पुनर्नवादिकाथः (१)
(वै. जी. । विला. १; वृ. नि. र. । ग्रहणी.) (. मा.; वं. से. । विद.)
पुनर्नवावल्लिजवाणपुला
विश्वाग्निपथ्याचिरबिल्वबिल्वैः। पुनर्नवादारुविश्वदशमूलाभयाम्भसा। गुग्गुल्वेरण्डतैलं वा पिबेन्मारुतविद्रधौ।
कृतः कषायः शमयेदशेषान्
दुर्नामगुल्मग्रहणीविकारान् ॥ पुनर्नवा ( साठी ), देवदारु, सोंठ, दशमूल,
पुनर्नवा ( साठी), काली मिर्च, शरपोखा, और हरे के काथमें गूगल या अरण्डीका तेल
सेठ, चीता, हर्र, करंजुवा और बेलगिरी । इनका मिलाकर पीनेसे वातज विद्रधि नष्ट होती है।
काथ बवासीर, गुल्म और ग्रहणीको नष्ट १ शोथे कफोत्ये महिषाक्षयुक्तमिति पाठान्त रम् । ' करता है।
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