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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२४१] भारत-भैषज्य रत्नाकर। [पकारादि शोथे कफोत्थेऽक्षसमं समूत्रं । (३८४६) पुनर्नवादिकाथः (२) कार्थ पिषेद्वाप्यथ चैव तेषाम् ॥ (वृ. नि. र. । उदर.) पुनर्नवा ( साठी )की जड़, सोंठ, निसोथ, पुनर्नवादारुमहौषधाम्बु गिलोय, अमलतासका गूदा, हर्र और देवदारु ।। गोमूत्रसिद्धः श्वयथु निहन्ति । सब चीजें समान भाग लेकर सबको गोमत्रके | तथा कणाशुण्ठिगुडोत्थचूणे साथ पीसकर उसीके साथ १। तोलेकी मात्रानुसार शोफामशूलनमजीर्णहारि॥ पीनेसे अथवा इन चीजोंका काथ पीनेसे कफज | पुनर्नवा (साठी), देवदारु, सेठ और सुगन्धशोथ नष्ट होता है। बाला । इनको गोमूत्रमें पकाकर सेवन करनेसे ( व्यवहारिक मात्रा-६ माशे ) । शोथ नष्ट होता है। पीपल, सोंठ और गुड़ । इनका चूर्ण सेवन (३८४४) पुनर्नवादिकषायः करनेसे सूजन, आम, शूल और अजीर्णका नाश (ग. नि. । ज्वरा.) होता है। पुनर्नवा गुडची च त्रायन्त्येरण्डवासकम् । । (३८४७) पुनर्नवादिकाथः (३) पञ्चमूल्येकतश्चात्र गोमूत्रेण श्रुतं शुभम् ॥ . (वृ. नि. र. । उदर.) नश्यत्यनेनाभिन्यासः संज्ञा चास्योपजायते ॥ । पुनर्नवामृतादारुपथ्यानागरसाधितः। पुनर्नवा ( साठी ) गिलोय, त्रायमाना, अर- गोमूत्रगुग्गुलुयुतः काथः शोथोदरापहः॥ ण्डकी जड़, बासा और पञ्चमूल (बेल, खम्भारी, | साठी, गिलोय, देवदारु, हर्र और सांठके अरलु, पाठा, अरणी ); इनको गोमूत्रमें पकाकर क्वाथमें गोमूत्र और गूगल मिलाकर सेवन करनेसे पीनेसे अभिन्यास सन्निपात नष्ट होता और रोगी | शोथोदर नष्ट होता है । होशमें आ जाता है। (३८४८) पुनर्नवादिकाथः (४) (३८४५) पुनर्नवादिकाथः (१) (वै. जी. । विला. १; वृ. नि. र. । ग्रहणी.) (. मा.; वं. से. । विद.) पुनर्नवावल्लिजवाणपुला विश्वाग्निपथ्याचिरबिल्वबिल्वैः। पुनर्नवादारुविश्वदशमूलाभयाम्भसा। गुग्गुल्वेरण्डतैलं वा पिबेन्मारुतविद्रधौ। कृतः कषायः शमयेदशेषान् दुर्नामगुल्मग्रहणीविकारान् ॥ पुनर्नवा ( साठी ), देवदारु, सोंठ, दशमूल, पुनर्नवा ( साठी), काली मिर्च, शरपोखा, और हरे के काथमें गूगल या अरण्डीका तेल सेठ, चीता, हर्र, करंजुवा और बेलगिरी । इनका मिलाकर पीनेसे वातज विद्रधि नष्ट होती है। काथ बवासीर, गुल्म और ग्रहणीको नष्ट १ शोथे कफोत्ये महिषाक्षयुक्तमिति पाठान्त रम् । ' करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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