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भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि
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पटोलपत्र, गुलैठी, कुटकी, नागरमोथा और निन्ति कफपित्तकुष्ठज्वरान्
तिजारी, चौथिया, विषमज्वर, दाहपूर्व ज्वर और | पटोलपत्र, नीमकी छाल, असनाका सार, नववर नष्ट होता है।
आमला, हर्र और बहेड़ा । इनके काथमें गूगल (३७६१) पटोलादिकाथः (४२) मिलाकर प्रातःकाल सेवन करनेसे विसर्प, विस्फोट (वृ. नि. र.; यो. र.; ग. नि. । ज्वर.)
और दुष्ट व्रण नष्ट होते हैं। पटोलयष्टीमधुतिक्तरोहिणी
(गूगल १॥ से ३ माशे तक मिलावें।) घनाभयामिविषमज्वरघ्नम् ।
| (३७६४) पटोलादिगणः (१) कृतः कषायत्रिफलामृतारैः
(वा. भ. । सू. अ. १५) _पृथक्पृथग्वा विषमज्वरापहः॥ | पटोल कटुरोहिणी चन्दन
मधुस्रवगुडूचिपाठान्वितम् । हर्रका काथ विषमज्वरको नष्ट करता है। निहन्ति कफपित्तकुष्ठज्वरान् अथवा त्रिफला या गिलोय या बासेका काथ
विषं वमिमरोचकं कामलाम् ॥ पीनेसे भी विषमज्वर नष्ट होता है ।
पटोल, कुटकी, लालचन्दन, महुवा, गिलोय
और पाठा । यह द्रव्यसमूह कफ, पित्त, कुष्ठ, (३७६२) पटोलादिकाथः (४३)
ज्वर, विष, वमन, अरुचि और कामलाको नष्ट (ग. नि. । विस्फो.; यो. र.; . मा.। विस्फो.;
करता है। यो. त. । त. ६६)
(३७६५) पटोलादिगणः (२) पटोलामृतभूनिम्बवासकारिष्टपर्पटैः।
(यो. त. । त. ५१) खदिराब्दयुतैः काथो विस्फोठात्तिज्वरापहः॥ पटोलवासकारिष्टगुडूचीत्रिफलाधनम् ।
पटोलपत्र, गिलोय, चिरायता, बासा | पञ्चमूली सयष्टयाहा चन्दनं विश्वभेषजम् ॥ (अडूसा), नीमकी छाल, पित्तपापड़ा, खैरसार और | पटोलादिर्गणः प्रोक्तः सर्वनेत्रामयापहः। नागरमोथेका काथ पीनेसे विस्फोटक और ज्वर | वातिकं पैत्तिकं चैव श्लैष्मिकं सामिपातिकम् शान्त होते हैं।
सावं रक्तप्रकोपञ्च पटोलादिळपोहति ॥ (३७६३) पटोलादिकायः (४४) __ पटोल, वासा, नीमकी छाल, गिलोय, त्रि( भा. प्र. । ख. २ विस्फो.; वं. से. । व्रणशो.) | फला, नागर मोथा, पञ्चमूल, मुलैठी, लालचन्दन
और सेठ । इन ओषधियोंके समूहको 'पटोलादिपटोलनिम्बासनसारधात्री
गण' कहते हैं। पथ्याक्षनि'हमहर्मुखेषु ।
पटोलादिगण वातज, पित्तज, कफज और पिबेधुतं गुग्गुलुना विसर्प
सन्निपातज नेत्ररोग, नेत्रस्राव और रक्तप्रकोपको विस्फोटदुष्टत्रणशान्तिमिच्छन् ॥ । नष्ट करता है ।
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