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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [१२६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [धकारादि (३२५८) घान्यकहिमः । (३२६१) धान्यकादिकाथः (२) (वै. जी. । विला. १; ग. नि.; भा. प्र.; यो. र. (वृं. मा.; ग. नि. । ज्वरा.; आ. वे. वि. । __ वृ. नि. र.; वं. से.; . मा.; यो. र.;.. चि. अ. ४) भै. र. । ज्वर.) दीपनं कफविच्छेदि पित्तवातानुलोमनम् । पर्युषितं धान्यजलं प्रातः पीतं सशर्करं साम ।। ज्वरघ्नं पाचनं भेदि शृतं धान्यपटोलयोः॥ अन्तदाई शमयति मद्धमपि तत्क्षणादेव ॥ धनिया और पटोलपत्रका काथ दीपन, (२ तोले) धनियेको अधकुटा करके रातको | कफ नाशक, पित्त तथा वायुको अनुलोम करने (१२ तोले ) पानीमें मिट्टीके बरतनमें भिगो दें; बाला, ज्वरनाशक, पाचन और भेदक है। प्रातःकाल छानकर उसमें खांड मिलाकर पीने से । (३२६२) धान्यकादिकाथः (३) अत्यन्त प्रवृद्ध अन्तर्दाह भी तुरन्त शान्त हो (भै. र. । ज्वराति.) जाती है। धान्यकं विश्वसंयुक्तमामघ्नं वह्निदीपनम् । (३२५९) धान्यकादिकषायः वातश्लेष्मज्वरहरं शूलातिसारनाशनम् ।। (ग. नि. । ग्रह.) धनिया और सोंठका काथ पीनेसे आम, धान्यबिल्ववलाशुण्ठीशालिपर्णीभृतं जलम् । वात-कफज्वर, शूल और अतिसार नष्ट होता है । स्याद्वातग्रहणीदोषे पानाहारपरिग्रहे ॥ (३२६३) धान्यकादिहिमः धनिया, बेलगिरी, खरैटी, सोंठ और शाल- ( भा. प्र. । रक्तपित्ता.; वै. र. । रक्तपित्ता.) पर्णी के काथ से आहार बनाकर देने और प्यास | धान्याकधात्रीवासानां द्राक्षापर्पटयोहिमः। में वह जल पिलानेसे वातज ग्रहणी नष्ट होती है। रक्तपित्तं उचरं दाहं तृष्णां शोषश्च नाशयेत् ॥ (सब चीजें मिली हुई १। तोला, पानी २ धनिया, आमला, बासा, दाख ( मुनक्का ) सेर, शेष १ सेर ।) और पित्तपापड़ा समान भाग मिश्रित २ तोले (३२६०) धान्यकादिकायः (१) लेकर अधकुटा करके रातको १२ तोले पानी में (यो. र. । क्षय.) मिट्टीके बरतनमें भिगो दें और प्रातःकाल छानधान्यकं पिप्पलीविश्वदशमूलीजलं पिबेत् ।। कर पियें । पार्श्वशूलज्वरश्वासपीनसादिनिवृत्तये ॥ इसके सेवनसे रक्तपित्त, पित्तजज्वर, दाह, धनिया, पीपल, सोंठ और दशमूलका काथ | | तृष्णा और शोष रोग नष्ट होता है । पीनेसे पसलीकी पीड़ा, ज्वर, श्वास और पीनसादि धान्यचतुष्कम् रोग नष्ट होते हैं। धान्यपश्चकम् देखिये For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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