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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तृतीयो भागः । आसवारिष्टप्रकरणम् ] (३१३०) द्राक्षासवः (मृडीकासव:) (३) ( शा. ध.; ग. नि. । आसवा.; यो. र.; वृ. नि. र. । संग्र. ) मृद्वीकायाः पलशतं चतुर्द्रोणेऽम्भसः पचेत् । द्रोणशेषे सुशीते च पूते तस्मिन्प्रदापयेत् ॥ द्वे शते क्षौद्रखण्डाभ्यां धातक्याः प्रस्थमेव च । कङ्कलकलवङ्गे च जातीफलमयैव च ॥ पलांशकानि मरिचत्वगेलापत्र केसरम् । पिप्पली चित्रकं चव्यं पिप्पलीमूलं रेणुकम् ॥ घृतभाण्डे स्थितं चेदं चन्दनागुरुधूपिते । कर्पूरवासितो हयेष ग्रहण्यां दीपनः परः ॥ अर्शसां नाशनः श्रेष्ठः उदावर्त्तास्रपित्तनुत् । जठरकृमिकुष्ठानि व्रणांश्च विविधांस्तथा ।। अक्षिरोगशिरोरोगगलरोगविनाशनः । ज्वरं हन्ति महाव्याधिं पाण्डुरोगं सकामलम् || नाना द्राक्षासवो ह्येष बृंहणो वलवर्णकृत् ॥ १०० पल मुनक्का को ४ द्रोण (१२८ सेर ) पानीमें पकावें । जब १ द्रोण (३२ सेर) पानी शेष रह जाय तो उसे छानकर ठण्डा करके उसमें १००-१०० पल ( हरेक ६ । सेर) खांड और शहद तथा १ प्रस्थ ( ८० तोले ) धायके फूल एवं १-१ पल ( ५ - ५ तोले ) कंकोल, लौंग, जायफल, कालीमिर्च, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर, पीपल, चीता, चव, पीपलामूल और रेणुकाका चूर्ण मिलाकर घृतसे चिकने किये हुवे तथा चन्दन और अगर से धूपित मटके में भर कर उसका मुख बन्द करके १५ दिन तक रक्खा रहने दीजिये । तत्पश्चात् छानकर उसमें सुगन्ध के लिये थोड़सा कर्पूर कपड़े की पोटली में Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ९ ] | बांधकर डाल दीजिये और सुगन्धित हो जाने पर बोतलों में भरकर रखिये । "C "" यह द्राक्षासव ग्रहणी, अर्श, उदावर्त, रक्तपित्त, उदरके कृमि, कुष्ठ, अनेक प्रकारके व्रण, नेत्ररोग, शिरोरोग, गलरोग, ज्वर, पाण्डु और कामलाको नष्ट करता तथा बल वर्ण वीर्य और अग्निको वृद्धि करता है । ( मात्रा - २ - ३ तोले । पानी में डालकर भोजनके बाद पीना चाहिये । ) (३१३१) द्राक्षासवः (४) (ग. नि. । आस. यो. र. । अर्श.; बृ.नि. र. । संग्र. ) द्राक्षापलशतं दत्त्वा चतुर्द्रोणेऽम्भसः पचेत् । द्रोणशेषे रसे तस्मिन्पूते शीते प्रदापयेत् ॥ शर्करायास्तुलां दत्त्वा तत्तुल्यं मधुनस्तथा । पलानि सप्तधातक्याः स्थापयेदाज्यभाजने ॥ जातीलवङ्गकङ्कोललवलीफलचन्दनैः । कृष्णां त्रिगन्धसंयुक्तां भागैरर्धपलांशकैः ।। त्रिसप्ताहाद्भवेत्पेयं तत्र मात्रा यथाबलम् । नाम्ना द्राक्षासवो ह्येष नाशयेद्गुदकीलकान् ॥ शोफारोचकहृत्पाण्डुरक्तपित्तभगन्दरान् । गुल्मोदरकृमिग्रन्थिक्षतशोषज्वरान्तकृत् ॥ वातपित्तमशमनः शस्तश्च बलवर्णकृत् ॥ १०० पल (६। सेर) द्राक्षा ( मुनक्का ) को ४ द्रोण ( १२८ सेर ) पानी में पकावें जब ३२ सेर पानी शेष रहे तो उसे छानकर और ठण्डा करके उसमें १ तुला ( ६ । सेर) खांड और १ तुला शहद, ७ पल ( ३५ तोले ) धायके फूलोंका चूर्ण, तथा २॥ - २॥ तोले जावित्री, लौंग, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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