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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (७६) www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकर अथ अकारादि धप प्रकरणम् [२११] अगुर्वादि धूपः (बृ. नि. र.) अगुरुघनसारसल्लक कररुहनतनीर चन्दनैर्युक्तः । सर्जरसेन समेतो धूपोरुग्दाहकं हन्ति ॥ अगर, कपूर, सल्लकी, नखी, तगर, सुगन्ध बाला, चन्दन, और राल । इनकी धूपसे रुग्दाह . सन्निपात शान्त होता है । [२१२] अश्वगन्धादि धूप : (वृ. नि. र. ) अश्वगन्धोऽथ निर्गुण्डी बृहती पिप्पलीफलम् । अथ अकारादि [२१४] अर्कमूलादि धूम्रः (बृ. नि. र.) अर्कमूलशिलातुल्यं ततोर्जेन कटुत्रिकम् । चूर्णितं वह्निनिक्षिप्तं पिबेद्ध्रुमं तु योगवित् ॥ भक्षयेदथ ताम्बूलं पिबेदुग्धमथापि वा । कासः पश्वविधो याति शान्तिमाशु न संशयः ॥ [२१५] अञ्जन नं. १ (मूर्द्धान्तिक ) शिरीषबीजं गोमूत्रं कृष्णमरिच सैन्धवैः । अञ्जनं स्यात् प्रबोधाय सरसोनशिलावचैः । सिरस के बीज, पीपल, काली मिर्च, सेंधा नमक, ल्हसन, मनसिल और चचको गोमूत्र में पीसकर अञ्जन बनावे । इससे मूर्छा नष्ट होती है [२१६] अञ्जन नं. २ (बृ. नि. र.) अञ्जनं सम्यगारन्धं मधुसिन्धुशिलोषणैः । प्रमोद्रोहि भवति भाषितं भिषजां वरैः ॥ धूपोयं स्पर्शमात्रेण ह्यर्शसां शमने लम् ॥ असगन्ध, निर्गुण्डी बड़ी कटेली और पीपल । इसकी धूनी के स्पर्श मात्र से ही अर्श नष्ट हो जाती है। अथ अकारादि अञ्जन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२१३] अष्टगन्ध धूप: (शा. नि. भू.) कर्पूरं चन्दनं मुस्ता कुङ्कुमं देवदारु च । रोचना केशरोशीरं गन्धाष्टकमुदाहृतम् ॥ कपूर, चन्दन, नागरमोथा, केसर, देवदारू, गोरोचन, नागकेसर और खस । इनके योग को गन्धाष्टक कहते है । धूम्र प्रकरणम् आक की जड़ और मनसिल, १ - १ भाग । त्रिकुटा आधा भाग । इनके चूर्णका विधिवत् धूम पान करके ऊपरसे ताम्बूल खानेसे अथवा दूध पीनेसे पांच प्रकारकी खांसीका नाश होता है । प्रकरणम् शहद, सेंधानमक, मनसिल और मरिच । इनका अञ्जन मोहका नाश करता है । [२१७] अञ्जन नं. ३ (चातुर्थिकारी) ( वृ. नि. र. ) त्र्यूषणं हिंगुलवण वचा कटुरोहिणी । शिरीषनक्तमालानां वीजं श्वेताश्च सर्षपाः ॥ गोमूत्रपिष्टैरेतैस्तु वर्तिनेत्राञ्जने हिता । चातुर्थकमपस्मारमुन्मादं च नियच्छति ॥ त्रिकुटा, हींग, लवण, बच, कुटकी, सिरस के For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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