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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-तैल (६७) ३१। सेर गिलोय को २५६ सेर जलमें। सिद्धं बलाभ्याश्च सदेवदारु पकावे चौथाई रहने पर छान ले । फिर इस काथ हिताय नित्यं गलगण्डरोगे॥ और १६ सेर गायका दूध निम्नलिखित कल्कके | गिलोय, नीम, बालछड, कुड़ेकी छाल, पीपल, साथ १६ सेर तिल तेल सिद्ध करे । बला, अतिबला, देवदारु । इनके कल्क और क्वाथ कल्क द्रव्य-इलायची, जटामांसी, तगर, | से सिद्ध तेल गण्डमाला के लिए लाभदायक हैं। खस, सारिवा, कूठ, सफेद चन्दन, बला, सोया, | [१८५] अमृताख्यतैलम् (४) मेदा, महामेदा, ऋद्धि, जीवक, काकोली, क्षीर (च. सं. अ. २९. वा. र.) काकोली, गोरखमुण्डी, अतिवला (कंधी), नखी, | गुडूची मधुकं इस्वं पञ्चमूलं पुनर्नवाम् । सफेद मुण्डी, जीवन्ती, विदारीकन्द, कौंचके बीज, | रास्लामेरण्डमूलञ्च जीवनीयानि लाभतः ॥ शतावर, भुई आमला, काकडासिंगी, रेणुका, बच, | पलानां शतकैर्भागैर्बलापञ्चशतं तथा । गोखरू, एरण्डमूल, रास्ना, काली निसोत, पियाबांसा, | कोलबिल्वयवान्माषान् कुलत्थांश्चाढकोन्मितान पृश्निपर्णी, शल्लकी (सलई), नागरमोथा, दारचीनी, | काश्मर्याणां सुशुष्काणां द्रोणं द्रोणशतेऽम्भसि । तेजपात, ऋषभक, सुगन्ध बाला और मजीठ। प्रत्येक | साधयेज्जजेरं धोतं चतुद्रोणं च शेषयेत् ॥ ३॥ तोले, महुवे के काष्ट का सार ४० तोले। तैलद्रोणं पचेत्तेन दत्वा पञ्चगुणं पयः। यह तेलसे धातुक्षीणता, मन्दाग्नि, निर्बलता, चित्तः | पिष्टवा त्रिपलिकाश्चैव चन्दनोशीरकेशरान ॥ विभ्रम, उन्माद, बेचैनी, अपस्मार और वातव्याधि पौलागुरुकुष्ठानि तगरं मधुयष्टिकाम् । में अत्यन्त गुणकारी है । वैद्यों द्वारा प्रशंसित यह | मञ्जिष्ठाष्टपलं चैव तत्सिद्ध सार्वयौगिकम् ॥ श्रेष्ठ तेल गुरुवर कृष्णात्रेयने बतलाया था। वातरक्त क्षते क्षीणे भारार्ने क्षीणरेतसि । [१८३] अमृतादितैलम् (२) (वृ.नि. र.) बेपनोक्षिप्तभग्नानां सर्वाङ्गकाङ्गरोगिणाम् ॥ तैलं पिवेचामृतपल्लिनिम्ब योनिदोषमपस्मारमुन्मादं विषमज्वरम् । हन्यात्पुंसवनं चैतवेलाग्रथममृताह्वयम् ।। हिंङ्गवाभयावृक्षकपिप्पलीभिः ।। गिलोय, मुल्हठी, लघुपंचमूल, सांठीकी जड, सिद्ध बलाम्यां च सदेवदारु हिताय नित्यं गलगण्डरोगे॥ रास्ना, एरण्डमूल और जीवनीय गण, प्रत्येक ६। गिलोय, नीमकी छाल, हींग, हैड़, कुड़े की | सेर । बला ३१। सेर और बेर, बेल, जौ, उडद तथा कुल्थी प्रत्येक ४-४ सेर । सूखे हुवे खम्भारी छाल, पीपल, बला, अतिबला (कंघी) और देवदार ११९ के फल १६ सेर इनको कूट धोकर २० मन के कल्क और क्वाथ से सिद्ध किया हुवा तेल जलमें पकावे । जब ६४ सेर शेष रहे तो छानले गलगंड रोगमें लाभदायक है। और इसमें १ मन दूध डालकर तथा सफेद [१८४] अमृतावितैलम् (३) (भै. र.) चन्दन, खस, नागकेसर, तेजपात, इलायची, अगर, तैलं पिवेचामृतमल्लिनिम्ब कूठ, तगर और मुल्हैठी प्रत्येक १५-१५ तोले हिंसाहयावत्सकपिप्पलीभिः। और मजीठ ४० तोले का कल्क बनाकर उसके For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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