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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) भारत-भैषज्य-रत्नाकर एरण्ड तैल मूर्छा मजीठ, नागरमोथा, धनियां, त्रिफला, जयन्ती, मुगन्ध बाला, खजूर, बड़की दाढ़ी, हल्दी, दारु हल्दी, नलिका, केतकी, दही और कांजी । १ सेर तेलको मूर्छित करने के लिये इनमें से प्रत्येकं वस्तु ४-४ माशा लेनी चाहिये। [१७५] आगार धूमाचं तेलम् । काष्ठ, इन्द्रायण, चिरचिटा, केलेका कन्द । थोहर [ देखो प्र. स. ४२३] | और आकका दूध २-२ सेर । इनके कल्क तथा [१७३] अग्निमन्थादि क्षारतैलम् १६ सेर बकरी के मूत्रसे यथाविधि २ सेर सरसों के (च. सं. अ. १३ उदर) तेल का पाक करे। इसे लगाने से कच्ची और तथाग्निमन्यश्योनाकपलाशतिलनालजैः । अधपकी गण्डमाला पक जाती है और पकी हुई बलाकदल्यपामार्गक्षारैः प्रत्येकशः मुतैः ।। शुद्ध होकर भर जाती है तथा वह स्थान मदु तैलं पक्त्वा भिषम् दद्यादुदराणां प्रशान्तये । हो जाता है। निवर्तते चोदरिगां हृद्ग्रहश्वानिलोद्भवः ॥ । [१७८] अजित तैलम् (वं. से.) ____ अरणी, सोनापाठा, ढाक, तिलनाल, बला, | तैलस्य पचेत्कुडवं मधुकस्य पलेन कक्लपिष्टेन। केला और अपामार्ग, इनमेंसे किसी एकके क्षारसे आमलकरसप्रस्थं क्षीरप्रस्थेन संयुतं कृत्वा ।। | अजितं नाम्ना तैलं तिमिरं हन्याबिभिप्रोक्तम् । सिद्ध तैल पिलानेसे उदररोग शान्त होता है, विशेषतः उदर रोगी को वातज हृद्ग्रह हो जाय तो यह तैल विमलां कुरुते दृष्टि नष्टामप्यानयेन्नयने ।। बहुत लाभ पहुंचाता है (क्षारजल १६ सेर, तेल तिल तेल ४० तोले, मुल्हठी का कल्क ५ तोले, आमले का रस १ सेर, दूध १ सेर एकत्र ४ सेर । मिलाकर पकावें ।) मिलाकर तेल पाक सिद्ध करें। यह निमि प्रणीत [१७७] अजमोदादि तैलम् सेल तिमिर रोगको नष्ट करता है और नष्ट दृष्टिको ___ (व. नि. र., ग. नि. तैला) भी पैदा कर देता है। अजमोदा च सिन्दूरं हरितालं निशाद्वयम् । [१७९] अणुतलम् (१) धारद्वयं फेनयुतं सार्द्रकं सरलोद्भवम् । (सु. सं. चि. अ. ४) इन्द्रवारुण्यपामार्गकदलीकन्दकैः समैः । तिलपरिपीडनोपकरणएभिःसार्षपकं तेलमजामूत्रऽष्टयोजितम् ।। काष्ठान्याहृत्यानल्पकालं तैलपरि मृद्वग्नौ पाचयेदेतत् स्नुह्यकक्षीरसंयुतम् । पीतान्यणूनि खण्डशः अजमोदादिकं तैलं गण्डमालां व्यपोहति ॥ । कल्पयित्वाऽवक्षुद्यमहति कटाहे, आमां विदग्धां तु पचेत् पक्कां चैव विशोधयेत् ।। पानीये आप्त.व्य क्वाथयेत् रोपणं मृदुभावं च तैलेनानेन कारयेत् ॥ ततःस्नेहमम्बुपृष्ठाद्यदुदेति ___ अजमोद, सिंदूर, हरताल, हल्दी, दारु हल्दी, । तत् सरकपाण्योरन्यतरेणादाय यवक्षार, सज्जीखार, समुद्र फेन, अदरक, सरल वातनौषधप्रतीवापं च । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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