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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शिरोरोग कृमि (५०) शिरोरोगाधिकारः तैल-प्रकरणम् | ८९१९ अर्धनाडीनाट८८५५ अकोलबीजतै० बालोंका पीलापन, पलित, केश्वरः कफज शिरपीड़ा इन्द्रलुप्त, (केश बर्द्धक) । ९०१२ इङ्गुदीफलन० शिरके श्वेत तथा लाल ८८६० अपामार्गादि तै० कृमि जन्यशिरोरोग ८८६९ असनाचं तै० पलित ९४५५ करनादिन० शिरोविरेचक ९३५० कपूरतैलम् ९४५८ कार्पासमज्जादि समस्त शिरशूल शिरपीड़ा, शिरकी खाज, केशपतन ९४५९ कुकुमादिन० सूर्यावर्त,अर्धावभेद, वात पित्तज शिरोरोग लेप-प्रकरणम् ९४६२ कृतमालादिन० भयङ्कर सूर्यावर्तको भी ९१६३ एकाष्ठीलादि ले० शङ्खक रोग अवश्य नष्ट करता है। ९४१९ कुष्ठादि लेपः शिर पीड़ा ९४२८ कोद्रवमसीले. दारुण नामक शिरोरोग मिश्र-प्रकरणम् नस्य-प्रकरणम् ९५५८ कुङ्कुमादियो० शिरशूल, सूर्यावर्त, अर्धा८९१८ अपामार्गादिन० सूर्यावर्त, अर्धावभेद वभेद, पित्तज शिरोरोग (५१) शितपित्ताधिकारः लेप-प्रकरणम् मिश्र-प्रकरणम् ९४२२ कुष्ठादि ले० शीत पित्तकी परमौषध । ९५५४ काश्मरिफल यो० शीतपित्त शीघ्र नष्ट होता है। (५२) शूलाधिकारः | ९१४१ एरण्डादि योगः हर प्रकारका शूल कषाय-प्रकरणम् । ९१९४ कण्टकार्यादि९१३९ एरण्डसप्तकम् नितम्ब, उरु, मेढ़, हृदय । क्वाथः वातपित्तज शूल और स्तनका शूल For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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