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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [क्षय मिश्र-प्रकरणम् ९०९८ इक्ष्वादियोगः उरः क्षत के ब्रण ९५३० ककुभत्वचादि योगः राजयक्ष्मा, कास आदि (१८) क्षुद्ररोगाधिकारः घृत-प्रकरणम् ९०८३ इंगुदीफलमज्जा ९३२६ कारस्करघृतम् बिवाई (पाददारी) लेपः २१ दिनमें मुख व्या ९३३२ कुङ्कुमादि , मुख दूषिका, नीलिका ___ को नष्ट करता है। नाशक सौन्दर्यवर्द्धक । ९०८८ इन्द्रवारुण्यादि केशरंजक (सरल योग) | ९११८ उत्पलादिलेपः केशरंजक तेल-प्रकरणम् ९३८२ कट्विकादिलेपः चर्मकील ९३७० केतश्यादितैल अकाल पलित ९४०८ कान्तपाषाणादि ९३७१ केतक्याघतैल इन्द्रलुप्त, दारुणक, पलित, योगः बाल भ्रमर सदृश काले शिरको खाज हो जाते हैं और छः मास तक वैसे ही रहलेप-प्रकरणम् ८८८४ अर्कक्षीरादिलेपः मुखकी पुरानी स्यामता ९४२३ कुष्ठादिलेपः अरुषिका ९०५१ आरण्यतुलसीले० व्यङ्ग ९४२४ कृष्णतिलादि व्यंग ते हैं। (१९) गलगण्डगण्डमालाग्रन्थ्यधिकारः कषाय-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ८७९६ अलम्बुषा स्वरसः अपची, गण्डमाला ८४३ अर्क क्षीरादिलेपः सात दिनमें कण्ठमाला (सरल योग) को नष्ट करता है ९०७४ इन्द्रवारुणी मूल ८८९७ अश्वत्थादि भस्म योगः गण्डमाला अपचीको शीघ्र नष्ट ९२६१ काश्चनार योगः गण्डमाला (सरल योग) करता है तैल-प्रकरणम् | ९४०७ काश्चन्यादि ले० ७ दिनमें गण्डमाला ९३५५ काकादन्यादि तै० अपची अवश्य फूट जाती है लेपः For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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