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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकारादि - अबह । या नोपरुन्ध्यादाहारमेवं मात्रा जरां प्रति । षष्टिकः पयसा चात्र जीर्णे भोजनामिष्यते ॥ वैखानसा वालखिल्यास्तथा चान्ये तपोधनाः रसायनमिदं प्राश्य बभूवुरमितायुषः || मुक्त्वा जीर्ण वपुश्चाग्र्यमवापुस्तरुणं वयः । वीततन्द्राक्कमश्वासानिरातङ्काः समाहिताः ॥ मेघास्मृतिबलोपेताश्विररात्रं तपोधनाः । ब्राह्म तपो ब्रह्मचर्यं चेरुश्वात्यन्तनिष्ठया ॥ रसायनमिदं ब्राह्मथमायुष्कामः प्रयोजयेत् । दीर्घमायुर्वश्वाग्रयं कामांश्चेष्टान् समश्नुते ॥ हैड़ १००० नग, नवीन आमले ३००० नग, १ शालपर्णी, २ छोटी कटेली, ३ प्रश्निपर्णी, ४ बडी कटेली, ५ गोखरू, (१ लघु पंचमूल), १ बेल की छाल, २ अरणी, ३ सोना पाठा, ४ खम्भारी, ५ पाढल (२ बृहद् पंचमूल, .१ पुनर्नवा, २ मुद्गपर्णी, ३ माषपर्णी, ४ बला, ५ एरण्डमूल (३ पुनर्नवादि पंचमूल), १ जीवक, २ ऋषभक, ३ मेदा, ४ जीवन्ती, ५ शतावर(४ जीवनीय पंचमूल) १ शर, २ ईख, ३ कास, ४ दर्भ, ५ शालीमूल (५ तृणपंचमूल), इन पांच प्रकार के पंचमूलों की प्रत्येक औषधि ५०-५० तोला लेकर सब को दस गुने पानी में पकावे जब दशवां भाग बाकी रहे तो उतार कर छान ले और हैड़ तथा आमलों की गुठली दूर कर के उन्हें कूटकर उस रसमें मिला दे और साथ ही नीचे लिखी दवाइयों का चूर्ण भी मिलावे:- मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी), पिप्पली, शंखपुष्पी, केवटी मोथा, नागरमोथा, बायबिडंग, चन्दन, अगर, मुलैठी, हल्दी, बच, नागकेसर, छोटी इलायची और दारचीनी प्रत्येक का चूर्ण २० - २० तोला, मिश्री ६८|| सेर, तेल ८ सेर, घी १२ सेर । सब को मिलाकर तांबे से कढ़ाव में मन्दाग्नि | (४७) पर पकावे जब पाक सिद्ध हो जाये ( खरपाक न होने पावे) तो ठंडा करके उसमें १० सेर शहद मिलाकर घी के चिकने बरतन में भर कर रखदे । इसे उचित काल में उचित मात्रानुसार सेवन करे और पचने पर साठी के चावल और दूध खावे । इसके सेवन से वैखानस और बालखिल्यादि ऋषिगणों ने अमित आयु और तरुणावस्था को प्राप्त किया था तथा तन्द्रा और कमरहित, निर्भय, मेधा और स्मृतिमान् एवं बलवान् होकर बहुत समय तक तप करते रहे थे। इस ब्रह्म रसायन के सेवन से दीर्घायु प्राप्त होती है । [१४४] अमृतप्राश्यावलेहः ( वृ. नि. र. क्षय) क्षीर धात्री विदारीक्षुक्षीरीणां च तथा रसे। पचेत्समे घृतं प्रस्थं मधुरैः कर्षसम्मितैः ॥ द्राक्षाद्विचन्दनोशीरशर्करोत्पलपद्मकैः । मधूककुसुमानन्ताकाश्मरीतृणसंज्ञकैः ॥ प्रस्थार्द्ध मधुनः शीते शर्करायास्तुलां तथा । पलार्द्धकांश्च सञ्चूर्ण्य त्वगेलापत्र केशरान् । विनीय तस्य संलिह्यान्मात्रां नित्यं सुयन्त्रितः। अमृतप्राश्यमित्येतन्निर्मितं त्रिपुरारिणा || क्षीरमांसासिनो हन्ति रक्तपित्तक्षतक्षयान् । तृष्णारुचिश्वासकास छर्दिहिकाप्रमर्दनम् ॥ मूत्रकृच्छ्रज्वरनं च बल्यं स्त्रीरतिवर्द्धनम् ॥ I दूध, आमले का रस, बिदारीकन्द का रस, गन्ने का रस, पंच क्षीरी वृक्षों का रस या काथ और धी । प्रत्येक १-१ सेर मिलाकर पकावे फिर इसमें मधुरादि गण, दाख, दोनों चन्दन, खस, चीनी, नीलोफर, कमल, महुवेके फूल, अनंत मूल, खम्भारी, पंचतृणका कल्क १ - १| तोला डाल कर अवलेह बनावे, शीतल होने पर १ सेर मधु, ६ | सेर चीनी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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