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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम्] परिशिष्ट ६३६ जब मूषा खूब लाल हो जाय तो उसे निकालकर | ततः सप्तवटीदद्याद् दधिमस्तुसमप्लुताः । पत्थर पर उल्टा कर दें । इस विधिसे खपरियाका | नित्यं दधना च भोक्तव्यं कोष्ठदुष्टिनिवृत्तये ॥ बंगके समान सुन्दर सत्व निकल आयेगा । गोलि- | ग्रहणीमतिसारश्च ज्वरदोषश्च नाशयेत् । योंका जो भाग शेष रह जाय उसे पुनः उसी | अग्निदाढर्यकरं श्रेष्ठमामपर्पटिकाद्वयम् ॥ मूषामें रखकर धमावें । इसी प्रकार कई बार करनेसे ___पक्की ईटके चूर्ण, हल्दी और घरके धुर्वे में सम्पूर्ण सत्व निकल आयगा । शुद्ध किया हुवा पारद ७॥ माशे तथा भंगरेके रस में (९५९१) खर्परसत्वमारणम् शुद्ध गंधक ७॥ माशे लेकर दोनों की कज्जली बनावें और उसमें संभालु के पत्तोंका रस, मण्डूक(र. र. स. । पू. खं. अ. २;) | पर्णीका रस, भंगरेका रस, गूमाका रस, कोयलका तत्सत्वं तालकोपेतं मक्षिप्य खलु खपरे। रस. बाबचीका रस और लाल चीते के पत्तों का मर्दयेल्लोहदण्डेन भस्मीभवति निश्चितम् ॥ स ७॥-७|| माशे डालकर खरल करें। फिर खर्पर सत्वको (समान भाग) हरतालके साथ | सरसों के समान गोलियां बनाकर छायामें सुखा लें। खरल करके कढ़ाईमें डालकर आग पर चढ़ावें और इनमें से नित्य सात गोली दहीके पानीके लोहेकी मूसली आदि से घोटते रहें। इस विधिसे साथ खानेसे कोष्ठ विकार, संग्रहणी, अतिसार और उसकी भस्म हो जाती है। ज्वरका नाश होता तथा अग्नि दीप्त होती है । (९५९२) खसर्पणवटिका पथ्य-दही भात । ( भै. र. । र. रा. सु. । ग्रह.) इसका दूसरा नाम " आमपर्पटी है। पकेष्टकहरिद्राभ्यामागारधूमकेन च । (९५९३) खेचरी गुटिका शोधितं पारदश्चैव कर्षाढ़ तुलया धृतम् ॥ ( र. प्र. सु. । अ. ८ ज्वरा.) भृाराजरसैः शुद्धं गन्धकं रससम्मितम् । । रसकं दरदं ताप्यं गगनं कुनटी समम् । द्वाभ्यां कन्जलिकां कृत्वा भावयेत्तत्तु भेषजैः॥ सूतं समांशकं दद्यादम्लघेतसजै रसैः ।। सिन्दुवारदलद्रावे मण्डूकपर्णिकारसे । मर्दयेदिनमेकन्तु मूर्यधर्म शिलातले । केशराजरसे चापि ग्रीष्मसुन्दरजे रसे ।। पचेत्तं वालुकायन्त्रे दिनमेकं रसं खलु ॥ रसेऽपराजितायाश्च सोमराजोरसे तथा । स्वागशीतं समुद्धृत्य चूर्णीकृत्य प्रयत्नतः । रक्तचित्रकपत्रोत्थे रसे च परिभावितम् ॥ निम्बूरसेन गुटिका कर्तव्या चाढकीसमा ॥ रसमानसमानेन छायायां शोषयेद्भिषक् । सर्वज्वरहरा प्रोक्ता गुल्मोदरविनाशिनी । सर्षपाभाश्च गुडिकाः कारयेत् कुशलो भिषक् ॥ ' गुटिका खेचरी प्रोक्ता देहलोह विधायिनी ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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