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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६३० www.kobatirth.org - मैषज्य रत्नाकरः भारत अन्न का सेवन करता है उसका नाड़ीब्रण ( नासूर ) रोग नष्ट हो जाता है । (९५६८) कोशातकीयोगः ( ग. नि. । कुष्ठा. ३६ ) कोशातकीफले न्यस्तं जलं पर्युषितं निशि । कर्षमात्रं तु तत्पीतं सर्वकुष्ठरं परम् || कोषातकी ( कड़वी तुरई) के भीतर जल भरकर रात भर रक्खा रहने दें । [ ककारादि (९५६९) क्रव्याद्रवः ( वै. र. । अग्निमांद्या. ) व्यालष्टङ्कणधर्मपतनरजः कर्चेकैकं चार्द्रकं प्रस्थं सैन्धवसंयुतं दधिजलमस्थेन सम्पेषितम् । निम्बूकस्य रसस्तु तस्य तुलितो क्रव्यादनामारसो विष्टम्भोदरगुल्मलहरणो वह्निप्रदो रोचकः ॥ चीतामूल, सुहागा और काली मिर्च; इनका चूर्ण १ - १ तोला, अदरक १ सेर, दहीका पानी १ सेर और नीबू का रस १ सेर तथा स्वाद योग्य सेंधा नमक लेकर अदरकको दहीके पानी में पीसकर, प्रातः काल इसे सेवन करने से समस्त प्रकारके सबको एकत्र मिलाकर सुरक्षित रक्खें । कुष्ट होते हैं। मात्रा - १ | तोला | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके सेवन से क़ब्ज़, गुल्म और शूलको नाश होता तथा रुचि और अग्निकी वृद्धि होती है । इति ककारादिमिश्रप्रकरणम् *C For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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