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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] परिशिष्ट ५६५ (९४७४) कफान्तकरसः तालीसपत्रं त्वय नागपुष्प (र. का. धे, । कासा.) तमालपत्रं कपिकच्छुबीजम् । साचं गुडूच्याः क्षुरकस्य बीजं अमृतं टङमा स्यानिशाटई द्विसप्तधा। वटी विधेया सितया समेता ॥ टङ्कणं दशटकं स्यात्कणा स्यात्तावदेव तु ॥ वातप्रमेहं सकर्फ सपित्तं रक्तिकाद्वितयं खादेत्पर्णखण्डेन बुद्धिमान् । श्वासं च कासं बहुसन्निपातान् । कफान्तकरसो ह्येष कासवासनिबर्हणः ॥ बलं च हीनं स्वरभागजाडचं शुद्ध बछनागका चूर्ण १ भाग, हल्दीका चूर्ण | निहन्ति कामं खलु दीपयत्यपि ॥ १४ भाग, सुहागेकी खील १० भाग और पीपलका | कपूर, काकड़ासिंगी, धतूरेके बीज, जायफल, चूर्ण १० भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें। लोह भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, मात्रा-२ रत्ती। बंग भस्म, नाग भस्म, ताम्र भस्म, इलायची, शुद्ध बछनाग, धनिया, सोंठ, मिर्च, पीपल, तालीसपत्र, इसे पानमें रखकर खानेसे कास श्वासका नागकेसर, तमालपत्र (तेजपात ), कौंचके बीज, नाश होता है। गिलोयका सत और तालमखाना समान भाग लेकर (९४७५) कर्पूरशोधनम् प्रथम पारे गंधककी कग्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण तथा (सबके बराबर) (यो. र.) खांड मिलाकर (पानीके साथ खरल करके ५-५ गोदुग्धे त्रिफलाक्वाथे भृगदावे समांशके । रत्तीकी ) गोलियां बना लें। मर्दयेषाममात्रं तु कर्पूरै भुद्धिमाप्नुयात् ।। इनके सेवनसे वातज प्रमेह, पित्तप्रमेह, कफगोदुग्ध, त्रिफलाका क्वाथ और भंगेरका रस । प्रमेह, श्वास, कास, सन्निपात, निर्बलता, स्वरभंग समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर उसमें १ पहर | और जड़ताका नाश होता तथा कामाग्नि तक घोटनेसे कपूर शुद्ध हो जाता है। दीप्त होती है। (९४७६) कर्तरादिगुटिका (९४७७) कलायचूर्णादिगुटिका (ग. नि. । परि. गुटिका. ४ ) (च. द. । परिणामशूला. २७ ; वं. से. ; र. कर्पूरीमुनमत्तबीज का. धे.; . मा. । शूला ) जातीफलं लोहमृताभ्रक च। कळायचूर्णभागौ द्वौ लोहचूर्णस्य चापरः । रसोऽय गन्धं त्रपु नागशुल्वे कारखेल्लपलाशानां रसेनैव विदितः ॥ एला विषं धान्यकत्रिकं च ॥ १ लोह किट्टस्येति पाठान्तरम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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