SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५८९ अथ ककारादिनस्यप्रकरणम् (९४५३) कटुतुम्बिमूलनस्यम् | यह नस्य समस्त शिरोरोगोंमें शिरोविरेचन (रा. मा. । मुख रोगा. ५) कराने के लिये उपयोगी है। संपेषितः पर्युषितोदकेन (९४५६) कर्कोटमूलादिनस्यम् पटान्तनिश्चोतननिर्मलश्च । ( व. से. । पाण्ड्वा ) घ्राणोद्भवा सि निहन्ति नस्यं कर्कोटमूलस्य प्रेयं वा जालिनीफलम् । सद्यो नस्येन कन्दः कटुवम्बिकायाः॥ गुडूचीपत्रकल्कं वा पिबेत्तक्रेण कामली ॥ कडवी तंबीकी जड को बासी पानी में पीस | भक्तं तक्रेण भुञ्जीत स जहात्याशु कामलाम् ॥ कर कपड़े में लपेट कर निचोड़ें । इस प्रकार कामला रोगमें ककोड़े की जड़ के चूर्ण की निकाले हुवे स्वच्छ रस की नस्य लेनेसे नाक के या कड़वी तोरी के चूर्णकी नस्य देनी और गिलोय भीतर की अर्श ( मस्सों ) का शीघ्र ही नाश हो । के पत्तों को तक्र के साथ पीस कर उसी में मिला जाता है। कर पिलाना चाहिये। (९४५४) कपित्थपत्रयोगः पथ्य-तक भात । ( वै. म. र. । पटल ३) इस उपचार से कामला रोग शीघ्र नष्ट हो फपित्यपत्राणि विदितानि जाता है। हिकामु जिघेदयवाऽर्कतप्तम् ॥ कैथ के पत्तों को पीस कर ( रस निकाल (९४५७) काकोदुम्बरियोगः कर उसे ) धूप में गर्म कर के सूंघने से हिक्का का (व. से. । वातव्या ) नाश होता है। काकोदुम्बरिदुग्धैः सराम?हेरेत्सर्वयोगविश्च । (९४५५) करञ्जादिनस्यम् कपिकच्छुमूलयुक्तैर्नस्यैरपबाहुजां पीडाम् ॥ . ( व. से. शिरोरोगा.) ___कठूमरके दूधमें हींग और कौंचकी जड़का करअशिग्रुबीजानि पत्रकं शर्करा वचा। चूर्ण मिलाकर उसकी नस्य देने से "अपबाहुक" सर्वेषां शीर्षरोगाणामेतच्छीर्षविरेचनम् ॥ | नामक वातव्याघि नष्ट हो जाती है। ____ करा ( कञ्ज ) के बीजोंकी मींगी, सहजने । (९४५८) कार्पासमजादिनस्यम् के बीज, तेजपात, खांड और बचः सबके समान ! (ग. नि. । शिरोरोगा. १; वा. भ. । उ. अ. २४) भाग मिलित चूर्णको एकत्र मिला कर खरल कार्पासमज्जात्वङ्मस्तं सुमनःकोरकाणि च । कर लें। नस्यमुष्णाम्बुपिष्टानि सर्वमूर्धरुजापहम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy