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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५८७ कपूर, सुरमा, सीसा, पारद, पीपल और (९४४७) कासीसाद्यञ्जनम् (२) तीक्ष्णलोह भस्म समान भाग लेकर प्रथम पारदमें (वृ. मा. । नेत्ररोगा.) सीसेको मिलाकर खरल करें और जब दोनों एक जीव । पुष्पाख्यतायेजसितोदधिफेनशङ्कहो जाएं तो उसमें अन्य ओषधियों का चूर्ण मिला सिन्धृत्थगैरिकशिलामरिचैः समाशैः । कर अच्छी तरह घोटकर उसे तगरके रसकी भावना | पिष्टैस्तु माक्षिकरसेन रसक्रियेयं दें और फिर शहदमें घोट कर सांगके या स्फटिक | हन्त्यमकाचतिमिरार्जुनवमरोगान् ।। मणिके पात्र में नरकर सुरक्षित रखें। पुष्पाञ्जन, रसौत, सफेद मुरमा, समन्दरफेन, इसे आंखमें लगानेसे शुक्र, अर्म, काच और | शंख, सेंधा नमक, गेरु, मनसिल और काली मिर्च तिमिरका शीघ्र ही नाश हो जाता है । इनके समान भाग मिलित बारीक चूर्णको शहदमें घोट कर आंखमें लगाने से अर्म, काच, तिमिर, (९४४५) कार्पासाद्यञ्जनम् (यो. र. । नेत्ररोगा.) अर्ज और वर्म रोगों का नाश होता है । (९४४८) कुमारीवतिः कार्यासीफलजम्बामजलैघृष्टं रसाधनम् । (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) मधुयुक्तं चिरोत्थं च चक्षुःस्रावमपोहति ॥ स्यादभय उत्थसमा तुत्थादप्यष्टमो परिच भागः। लाल कपासके फल ( डोढे ), तथा जामन | वर्तिरियं हि कुमारी गतपपि चक्षुनिवर्तयति : और आम ( की गुठली ) एवं रसौत समान भाग लेकर बारीक पीस लें। ____ हर का चूर्ण ८ भाग, नीलेथोथे का चूर्ण ८ भाग और काली मिर्चका चूर्ण १ भाग लेकर इस शहद में मिलाकर आंख में आंजनेसे पुराना पानीमें घोटकर मौतयां बनावें। नेत्रत्राव ( इलका ) रोग र हो जाता है। इस जखमें लगानेसे नष्ट चक्षु भी ठीक (९४४६) कासीसाद्यञ्जनम् (१) हो जाती है। (व. से. । नेत्ररोगा. ) (१५४९) कुलत्थानाञ्जनम् कासीसजातिकलिकारसा (वै. जी. । वि. ३) अनक्षौद्रमरिचतुल्यांशः। सम्यस्विन्नाश्छगलजरसे काननोत्थाः अपनयति पिल्लकत्वं पिष्टैः पयसामनं सधः ॥ कुलत्थाश्चैलबद्धाः परिहततुषाः प्रौढसी पन्तिकसीस, चमेलीको कली, रसौत और काली नीभिः। मिर्च; इनका बारीक चूर्ण तथा शहद समान भाग सूक्ष्मं पिष्टाः पदुरसनिशाचूर्णपूर्णाः क्षपायां कर सबको दूधके साथ घोटकर अञ्जन बनावें । । चक्षुःक्षिप्ताः सकलरुधिरं संहरन्ति व्यहेण ।। इसे आंख में लगाने से पिल्लरोग शीघ्र नष्ट बनकुलथी ( चाकसू ) को कपड़े की पोटलोमें हो जाता है। बांध कर दोलायन्त्र विधिसे बकरीके मूत्रमें पकायें For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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