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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] __ परिशिष्ट । ५५६ (९३२९) काश्मर्यादितम् (३) घी में कसौंदी का, बैंगनका और भंगरे का ( व. से. । स्त्रीरोगा.) | स्वरस मिलाकर ( या इनके समान भाग मिलित काश्मरी बदरानन्ता गुड़ची मकैः श्रतम। । ४ सेर स्वरसमें १ सेर घी पकाकर ) दूधके साथ आजेन पयसा सिद्धमेतद घृतमसग्दरे ॥ पीनेसे पैत्तिक स्वरभंग नष्ट होता है। ___ कल्क-खम्भारी की छाल, बेर, अनन्तमूल, (९३३२) कुङ्कुमादिघृतम् गिलोय और मुलैठी; इनके ४-४ तोले चूर्णको ( भै. र. । क्षुरोगा, पानीसे पीस लें। कुङ्कुमेन निशाभ्याञ्च कणया वह्निवारिणा । ____२ सेर घीमें यह कल्क और ८ सेर बकरीका घृतं पक्वं निराकुर्यानीलिकां मुखदृषिकाम् ॥ दूध मिलाकर पकावें । जब दृध जल जाए तो सिध्मादींस्त्वगादान् सर्वान् व्याधीन कफसमुघो को छान लें। द्भवान्। यह घृत पीने से रक्त प्रदर नष्ट होता है । शिरोऽत्ति नाशयेच्चाश लावण्यं जनयेत्परम् ।। ( मात्रा-२ तोले ।) जगतामुपकाराय दस्राभ्यां विहितन्त्विदम् । (९३३०) कासमर्दादिघृतम् (१) पानेऽभ्यङ्गे तथा नस्ये युक्तथा योज्यं विचक्षणः।। (वृ. यो. त. । त. ८६) कल्क-केसर, हन्दी, दारुहल्दी और पीपल; स्वरोपघातेऽनिलजे भुक्तोपरि घृतं पिबेत् । इनका ५-५ तोले चूण लेकर पानीके साथ पीस लें। मरीचचूर्णसहितं मरुत्स्वरहतिपणुत् ।। क्वाथ-र चौतामलको ३२ सेर पानीमें कासमर्दग्सं दत्त्वा भार्गीकल्कं शनैः शनैः। । पका और ८ सेर रहने पर छान लें। सिद्ध सर्पिहन्ति पीतं स्वरभेदं मरुद्भवम् ॥ २ सेर घीमें यह कल्क और क्वाथ मिलाकर भोजनोपरान्त काली मिर्चका चूर्ण मिलाकर घी मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो घी पीनेसे वातज स्वरभंग नष्ट होता है। को छान लें। ___ यह घृत नीलिका, मुखदूषिका, सिध्मादि त्वग्रोग, मसौंदी के ४ सेर स्वरसमें १ सेर घी और कफन रोग और शिरपोडाको शीघ्र ही नष्ट कर देता १० तोले भरंगीका कल्क मिलाकर मंदाग्नि पर है तथा अत्यन्त सौन्दर्यवर्द्धक है। पकावें । जब पानी जल जाय तो घी को छान लें। इसे पिलाना चाहिये तथा अभ्यंग और नस्य यह घो पीनेसे वातज स्वरभंग नष्ट होता है। द्वारा यथावसर प्रयुक्त करना चाहिये । ( मात्रा-१ से २ तोले । ) (९३३३) कुटजादिघृतम् (९३३१) कासम दिघृतम् (२) (ग. नि. । अतिसारा. २) (ग. नि. । स्वरभंगा. १२) प्रयोग सं. ७७५३ षडङ्ग घृत देखिये । इस कासमर्दकवार्ताकमार्फवस्वरसैर्युतम् ।। में उसकी अपेक्षाक्षीरानुपानं चैतेषु पिबेत्सपिरतन्द्रितः।। " कुटज क्वाथ तुल्योऽत्र दाडिमस्य रसो मतः " For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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