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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् परिशिष्ट ' ५४५ (९२७६) कुलित्थचूर्णम् यः कुष्ठचूर्ण रजनीविरामे (व. से. । ज्वरा. ।) मध्वाज्यसम्मिश्रितमत्ति नित्यम् । स्वेदोद्गमे भ्रष्टकुलित्यचूर्ण समत्तमातङ्गबलः सुगन्धिनिपातनं शस्तमिति ब्रुवन्ति । ग्मिी चिरायुश्च भवेन्मनुष्यः ॥ मृत्युश्च तस्मिन्बहुपिच्छलत्वा (यो. त. । त. ८१) च्छीतस्य जन्तोः परितः सरत्वात् ॥ जो व्यक्ति नित्य प्रातःकाल घी और शहदके सन्निपात ज्वरमें अधिक पसीना आने लगे | साथ कूठका । तोला चूर्ण सेवन करता है वह तो भुनी हुई कुलथी के चूर्ण को शरीर पर | १ वर्ष में अत्यन्त बलशाली, दीर्घायु और वाग्मी मलना चाहिये । । (उत्तम वक्ता ) हो जाता है तथा उसके शरीरसे यदि अत्यधिक आने हुवे पसीनोंको न रोका | कमलकी सी सुगंध आने लगती है। जाय तो शरीर ठंडा होकर मृत्यु हो जाती है । (९२७७) कुशमूलयोगः (१) (९२८०) कुष्ठहरचूर्णम् (व. से. । अर्शो.) (र. चि. म. । स्त. ४) कुशमूलं बलायुक्तं पानं तण्डुलधावनम् । चिरबिल्वं चित्रपथ्या शिरीषं च विभीतकम् । रुणद्धि गुदजा सावं प्रदरं वापि सर्वजम् ॥ | काकोदुम्बरिकामूलं गोजलेन च भावितम् ॥ ___ कुशमूल और खरैटी समान भाग लेकर चूर्ण ! कर्षमात्रं पिबेद्रोगी गोजलेन समन्वितम् । बनावें । इसे चावलोंके धोवनके साथ पीनेसे गुदासे | सप्तसप्तकपर्यन्तं सर्वकुष्ठानि नाशयेत् ॥ होने वाला रक्तस्राव और सर्वदोषज प्रदर नष्ट होता है। करञ्ज, अर डनूल, हरं, सिरसकी छाल, (मात्रा-६ माशे।) बहेड़ा और कठूमरको जड़ समान भाग लेकर चूर्ण (९२७८) कुशमूलयोगः (२) बनावें एवं उसे गोमूत्र की भावना देकर सुरक्षित रक्खें। (यो. त. । त. ७४; वृ. मा. ; यो. र. । प्रदरा.) मात्रा--११ तोला । कुशमूलं समुद्धृत्य पेपयेत्तन्दुलाम्बुना। इसे सात सप्ताह तक गोमूत्र के साथ सेवन एतत्पीत्वा व्यहं नारी पदरात्परिमुच्यते ॥ करनेसे समत कुष्ठ नष्ट हो जाते हैं । कुशाकी जडको चावलों के पानीके साथ पीस (९२८१) कुष्ठादिकल्कः कर पीनेसे ३ दिन में प्रदर रोग नष्ट होता है। (यो. र.। स्नायुरोगा.) (९२७९) कुष्ठयोगः (र. र. रसा. खं. । उप. ५ ) | कृष्ठरामठ शुण्ठाभिः कल्कं शिग्रुसमन्वितम् । कुष्ठचूर्ण समध्वाज्यं नित्यं कर्ष लिहेत्तु यः । पानलेपनयोगेन तन्तुकीटविनाशनम् ॥ वत्सरादिव्यदेहः स्यादन्येन शतपुष्पवत् ।। ____कूट, हींग, सोंठ और सहजनेकी छाल का चूर्ण समान भाग लेकर पानीके साथ (या सहजने हमारे For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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