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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य रत्नाकरः [ ककारादि - (९२२४) कुशा देक्वाथः (१) (९२२७) कूष्माण्डयोगः (वै. जो. : वि. ४) (व. से. । अश्मर्य.) सक्षौद्र कुशकागोक्षुरशिवाशम्पाकपाषाणभि- कूष्माण्डफरसो हिमुयनक्षारसमायुतः । दुस्पर्श परिसेवितं परिहरेत्सघोश्मरी दुस्तराम् ।। पर बस्ती मेढ़े सशूले च शर्कराश्मरिनाशनः ।। पेठेके रसमें हींग और जवाखार मिलाकर कुशकी जड़, कासकी जड़, गोखरुकी जड़, हरं, अमलतास, पाषाणभेद और धमासा समान पीनेसे बस्ती और मेढ़की शूलयुक्त शर्करा और अश्मरी नष्ट हो जाती है। भाग लेकर क्वाथ बनावें । इसमें शहद मिलाकर पीनेसे दुस्साध्य अश्मरी भी शीघ्रही नष्ट होजाती है। (९२२८) कूष्माण्डरसयोगः (१) (वृ. यो. त. । त. १०२ ) (९२२५) कुशादिक्वाथ: (२) यवक्षारगुडोन्मिश्रं रसं पुष्पफलोद्भवम् । ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३४) पिबेन्मूत्रविबन्धन्नं शर्कराइमरिनाशनम् ॥ इशकाशनलं वेणु भनिमन्थाश्मरीनकम्। पेठे ( भूरे कुम्हड़े )के रसमें जवाखार और पर्दष्ट्रा मोरटा वापि तथा पाषाणभेदकम् ॥ | गुड़ मिलाकर पीनेसे मूत्राघात, शर्करा और अश्मरि पलाशस्त्रिफलाक्वायो गुडेन परिमिश्रितः। का नाश होता है। पानान्मूत्राश्मरी हन्ति शूलं बस्तौ व्यपोहति ॥ (९२२९) कूष्माण्डरसयोगः (२) कुश, काश, नल, बांस, अरणी, बरना, (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३२ ; ग. नि. । गोखरु, मूर्वा, पाषाणभेद, पलाश (ढाक) की जड़ मूत्रकृ. २७ ; वै. म. र. । पटल ७) और त्रिफला समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।। कूष्माण्डरसमादाय शर्करासहितं पिबेत् । इसमें गुड मिलाकर पीनेसे मूत्राश्मरि और | यस्तु त्रिदोषसम्भूतमूत्रकृच्छूनिवारणम् ॥ बस्तिशूलका नाश होता है। भूरे कुम्हडे ( पेठे) के रसमें खांड मिलाकर (९२२६) कुष्ठादिकषायः पीनेसे त्रिदोषज मूत्रकृच्छू नष्ट हो जाता है । (ग. नि. । ज्वरा. १) ___ (९२३०) कूष्माण्डरसयोगः (३) छठं सातिविष मुस्तानागरं देवदारु च । ( शा. सं. । खं. २ अ. १) यवासकः कृतः पायो हितः श्लेष्मज्वरान्विते॥ कल्याण्डकाय सरसो, तः लष्मज्वरान्वित।। कूष्माण्डकस्य स्वरसो गुडेन सह योजितः । कूठ, अतीस, नागरमोथा, सोंठ, देवदारु दुष्टकोद्रवसातं मदं पानाद् व्यपोहति ॥ और जवासा समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । भरे कुम्हडे ( पेठे ) के रसमें गुड़ मिलाकर यह क्वाथ कफज्वरमें हितकारी है। पीनेसे कोद्रव (कोदों ) का मद नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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