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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् परिशिष्ट ५२७ - -- MO अथ औकारादिमिश्रप्रकरणम् (९१८५) औष्ट्रक्षीरयोगः । ऊंटनी का दूध पीनेसे 4 मयंकर कुष्ट भी ( ग. नि. । कुष्टा. ३६ ) नष्ट हो जाता है कि जिसमें कृमि पड़ गये हों, जातकृमीणि कुष्ठानि च्युतरोमनरखान्यपि। रोम और नरख गिर चुके हो तथा ५. "का मास अपि वा शीर्णमांसानि क्षीरमौष्ट्र पिवयेत् ॥ सड़कर बिग्वर गया हो । इति औकारादिमिश्रप्रकरणम् +Attrity न अथ ककारादिकषायप्रकरणम् (९१८६) कटङ्कटेयाँदिक्वाथः (१) दारहन्दी, रसौत, नागरमोथा, बासा, चिग़(व. से. । प्रमेहा. ) यता, भिलावा और तिल समान भाग लेकर क्वाथ कटङ्कटेरीमधुकत्रिफलाचित्रकैः समः। बनावें। इसमें शहद मिलाकर पीनेसे स्त्रियोंका सिदः कषायः पातव्यः प्रमेहानां विनाशनः।। अनेक प्रकारका प्रदर रोग नष्ट होता है। ____दारुहल्दी, मुलैठी, हर्र, बहेड़ा, आमला और (९१.८८) कटुकादिक्वाथः (१) चौतामूल समान भाग लेकर क्वाथ बनायें । ( वा. भ. । चि. अ. १) यह क्वाथ प्रमेहों को नष्ट करता है। पाचयेत्कटुकां पिष्ट्वा कर्परेभिनवे शुचौ । (९१८७) कटकटेादिक्वाथः (२) निष्पीडितो घृतयुतस्तद्रसो ज्वरदाहजित् ।। (वै. जी. । वि. ३) ( ताजी-हरी ) कुटकी को पीसकर मिट्टीके कटटेरीरसजान्दवासा शुद्ध नवीन पात्रमें रखकर स्वेदित करें और फिर भनिम्बभल्लीतिलजः कषायः । । उसे निचोड़कर रस निकालें । इसमें घी मिलाकर सौदान्वितश्चञ्चललोचनानां पीनेसे ज्वर और दाहका नाश होता है। नानाविधानि प्रदराणि हन्यात् ।। (मात्रा--रम १ तोला, घी १ तोला ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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