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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१६ www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरः [ एकारादि सेर, तिलका तेल और बरने के पत्तों का रस १-१ ६० ताले, गोदुग्ध ६ सेर, तथा मुलैठी और क्षीरकाकोलीका कल्क ७| तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें । इसे कान में डालने और इसकी नस्य लेनेसे कर्णनाद, बधिरता और कर्णशूलका नाश होता है । इति एकारादितैलमकरणम (९१६२) एरण्डादितैलम् ( व. से. । कर्णेगा. ) एरण्ड शिवरुण मूलिकापत्र जे रसे । चतुर्गुणे पचतैलं क्षीरे चाष्टगुणान्विते || यष्ट्याह श्रीरकाकोलीकल्कयुक्तं निहन्ति तत् । नादाधिर्यथूलानि नावनाभ्यङ्गपूरणैः ॥ अरण्डके पत्तोंका रस, सहजन के पत्तों का रस अथ एकारादिलेपप्रकरणम् (९१६३) एकाष्ठीला दिलेपः (ग. नि. । शिरोरोगा. ) एकटीला पुण्डरीकं मधुकं नीलमुत्पलम् । पद्मकं वेतसं मूत्र लामज्जकमथापि वा ॥ दाव हरिद्रा मञ्जिष्ठा फेनिलोशीरमेव च । एतैरालेपनं कार्य शङ्खस्य विनाशनम् || एतान्येव तु सर्वाणि कषायमुपसाधयेत् । तेन शीतेन कर्तव्यं बहुशः परिषेचनम् ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९१६४) एडगजादिलेपः ( व. से. । कुष्टा.; वृ. मा. ; ग. नि. ; च. द. । कुष्ठा. ) एडगजकुछ सैन्धवसौवीरसर्षपैः कुमिव । कृमिसिध्मदमण्डलकुष्ठानां नाशनो छेपः ॥ माड़ के बीज, कूट, सेंधानमक, सौवीराजन, सरसों और बायबिडंगका चूर्ण समान भाग लेकर पानी में पीसकर लेप करनेसे कृमि, सिम ( छीप ), दाद और मण्डल का नाश होता है। पाठा, कमल, मुलैठी, नीलोत्पल, पद्माक, बेत, मूर्वा, लामज्जक, ( खसभेद ), दारूहल्दी, हल्दी, मजीठ, हिसोड़ा और खस समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसको ( पानी में पीसकर ) लेप करनेसे शंख रोग नष्ट होता है । (९१६५) एरण्डादिलेप: (१) ( वै. म. र. | पटल १९ ) मलेपः स्यात्तु वातारिशाल्मलीक्वथितैर्जलैः । गैरिकद्विनिशाभिर्वा नखदन्तविषे हितः ॥ | अथवा इन्हीं ओषधियों के शीत कषायका बार बार अवसेचन करने से भी शंखक रोग नष्ट होता है। अरण्डमूल और सेंभलको जड़को गरम पानी में पीसकर लेप करने से या गेरु, हल्दी और दारूहल्दीका लेप करने से नख और दन्त विष नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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