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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [उकारादि (९१२८) उदरारिलोहः | लोहदण्डेन सघृष्य लोहपात्रे चिरं भिषक् । (र. र. ; व. से. । उदरा.) | विधिज्ञोक्तेन विधिना हिताहारविहारवान् ।। स्नुह्यर्कदन्तीधववतिफली अन्नपानं यथा सात्म्यं कुर्वनित्यं निरामयः । उदरेषु च सर्वेषु शोथेषु विविधेषु च ॥ शोफारिपाशोऽशनकन्दकन्दः । अर्शःसु च विशेषेण पाण्डुरोगे सकामले । माणत्रियामाग्निकवाणरण्डा तालं तथा मारिपारिभद्रौ ॥ विधिनोक्तेन कुर्वाणो नरो रोगान विन्दति ।। प्रत्येकशः क्षारचतुः पलांश __सेहुंड ( स्नुहो-थूहर ), आक, दन्ती, धव, तथा पलाशस्य समेः समः स्यात् । भिलावा, फंजी ( भरंगी ), पुनर्नवा (बिसखपरा), चतुर्गुणे क्वाथजलाष्टशेषे बरना, असना, जिमीकन्द, विदारीकन्द, मानकन्द पचेद्विधिज्ञा विधिशुद्धलोहम् ॥ हल्दी, चीता, सरफोंका, मूषाकर्णी, ताड़, तुलसी चूर्णीकृतं तत्पुटितं पुटेन और पारिभद्र ( फरहद या नीम ); इनका क्षार २०-२० तोले और पलाश (ढाक) का क्षार सबके तन्तुच्युतं षोडशिकं पलानाम् । वर्षाभूभल्लातकवहिदन्ती बराबर लेकर सबको चारगुने ( ८ गुने ) पानीमें त्रिवन्तीरविद्धमूलम् ॥ पका और आठवां भाग शेष रहने पर उसमें १ सेर लोह भस्म तथा निम्न लिखित काथ और १-१ कञ्चुकी तालमूली च पीवरी गिरिकर्णिका । मीलिनी बृहतीपत्रं शम्पाकं विजया समम् ।। सेर स्नुही तथा आकका दूध एवं २ सेर घी डाल चतुष्पलांशं क्वथिताष्टशेष कर ताम्र पात्रमें पकावें । स्नुपर्कदुग्धेन पलाष्टकेन । क्वाथ-पुनर्नवा, भिलावा, चीतामूल, दन्ती. दत्त्वा पवेत्ताम्रमये सुपात्रे मूल, निसोत, द्रवंती, आककी जड़, विधारेकी जड़, पलैर्द्विरप्टै विषस्तथैव ।। सरफोंकाकी जड़, तालमूली ( मूसली), शतावर, अमृनि चूर्णानि च सिद्धशीते कोयल, नीलकी जड़, कटेलीके पत्ते, अमलतासका क्षिपेत्तथा लोहरजः समानि । गूदा और भांग २०-२० तोले लेकर फूटकर लवणानि च सर्वाणि क्षारः पञ्चोषणानि च ॥ आठ गुने पानोमें पकावें और आठवां भाग शेष मरिचं चाजमोदा च हिमुभल्लातकानि च। | रहने पर छान लें । चित्रकं तालमूलश्च गवाक्षी त्रिताऽमृता ॥ जब पकते पकते अवलेहके समान गाढ़ा हो वर्शभूः मूरणो मानो विडङ्गं दन्ति:न्धिकम् । जाय तो ठंडा करके उसमें निम्न लिखित ची का mit माक्षिकचूर्णस्य कङ्कष्ठकशिलाजतोः ॥ चूर्ण मिला।गु.लोगन्धकस्यापि पारदस्य पलं पृथक् । पांचों नमक, जवाखार, सजीखार, सुहागा, शीते पलाष्टक क्षौद्रं दत्वा मधुघृतान्वितम् ।। । पोपल, पीपलामूल, चव, चीतामूल, सोंठ, काली मिर्च For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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