SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परिशिष्ट लेपप्रकरणम् ] उपोदिका (पोई) को कांजी या तक्र में पीसकरे उसमें सेवा नमक मिलाकर गाढ़ा गाढ़ा लेप करने से मर्मज अर्बुद नष्ट हो जाता है । (९१२१) उशोरादिलेपः ( वै. म. र । पटल ११ ) उशीर बहुशो लिम्पेनश्येत् वेदमसूरिका । इति उकारादिलेपकर गम् -DfoffoKD अथ उकारादिधूपप्रकरणम (९१२२) उग्रगन्धादिधूपः ( वृ. मा. । मसूरिका. ) उग्राज्यवंश नीली यवविष कार्पासिकी सब्राह्मी सुरसमयूरकलाक्षाधूपो रोमान्तिकादिहरः । आदावेन प्रयुक्तस्य प्रशा यन्ति ममरिकाः न गृह्णन्ति विषं विद्ययाला रिह || बच, वांसके पत्ते, नीलका पंचांग, जौ, वळनाग, कपास के बीज (बिनौले), पाली, तुलसी, 1 (९१२३) उन्मादभञ्जिनीवदी (र. रा. सु. | उन्मादा. ) शुद्धं मनःशिला चूर्ण सैन्धवं कटुरोहिणी । बचा शिरीषबीजश्च हिहुं च श्वेतसर्षपम् ॥ खसको ( पानी के साथ बारीक पीसकर बारबार लेप करने से स्वेद और मसूरिका का नाश होता है । कर अपामार्ग ( चिरचिटा ) और लाख समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें तथा उसे घी से चिकना लें I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति उकारादिधूपप्रकरणम् ५०३ मसूरिका के प्रारम्भमें इसकी धूप देने से वह नष्ट हो जाती है । अथ उकाराद्यञ्जन प्रकरणम् इस योग में कोई कोई वैद्य 'विष' ग्रहण नहीं करते । इसकी जितनी चीजें मिल सके उतनी ही ले लेनी चाहियें । For Private And Personal Use Only करवीजं त्रिकटु मलं पारावतस्य च । एतानि समभागानि गोमूत्रैर्वटिकां कुरु ॥ गिरिमली बीज समां छायाशुष्काञ्च कारयेत् । मातः सन्ध्या निशाकाले चक्षुषोरञ्जनहितम् ।।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy