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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेहप्रकरणम् ] परिशिष्ट ५०१ (९११५) उदुम्बरादियोगः सर्वावक्तभवांश्चैव रोगानाशयति ध्रुवम् । ( वृ. मा. । रक्तपित्ता. ; यो. र. ; व. से.। कृपया ह्येकदा मा मातुलेन प्रकाशितम् ॥ रक्तपित्ता.) उशवा २० तोला, चिरायता ९ तोला, उत्तम पक्वोदुम्बरकाश्मर्यपथ्याखर्जूरगोस्तनाः। निशोथ १० तोला, सनाय ६ तोला, बड़ी हर्डका मधुना नन्ति संलोढा रक्तपित्तं पृथक्पृथक् ॥ बक्कल ३ तोला, कावलीहरडका बक्कल ३ तोला, ___ पक्के गूलर, खम्भारीके फल, हर्र, खजूर | जंगीहर्ड ३ तोला, गुलाबके फूल १॥ तोला, और मुनक्का, इनमें से किसीको भी पीसकर शहद | आकाशवेल ( अफतिमुन ) १॥ तोला, सौंफ- १॥ में मिलाकर चाटने से रक्तपित्तका नाश होता है। तोला, नीलोफर १॥ तोला, पित्तपापड़ा १॥ तोला, (१११६) उशबाऽवलेहः एलुवा १।। तोला, चोपचीनी ५ तोला, धनिया १ (न. मृ. । त. ८) तोला, लालचंदन १ तोला, इन सबको कपड़छान करके, वीस तोला बादामरोगनमें मसलकर सबसे चतुःपलां ध्रुवजटां नवकप किरातकम् । तीनगुने शुद्ध शहदमें मिलाकर चिकने वर्तनमें भरदशकर्षा विद्ग्राह्या पट्कर्षा स्वर्णपत्रिका ॥ कर रख देवें । इसमेंसे एक तोला. अथवा जितना हरीतकीत्रयं चैव त्रित्रिकर्ष पृथक पृथक् । वैद्य उचित समझे उतना खिलाकर ऊपरसे थोड़ाशतपत्री निराधारा शतपुष्पा तथैव च ॥ सा गरम जल पिलावे और मूंग, चावल, घी, आदि नीलोत्पलं पर्पटं च सार्द्धकषलवालुकम् । कर्षकर्पप्रमाणेन धान्यकं रक्तचन्दनम् ।। पथ्य भोजन करावे । तैल, खटाई, दही, दूध, उड़दकी दाल, लाल मिर्चसे परहेज रक्खे और चोपचीनीपलं चैकं योजयेन्मतिमानरः। इसको वसंत ऋतुमें बराबर दो महीने खिलावे तो सर्व सङ्कुटय विधिना श्लक्ष्णं चूर्ण च कारयेत् ।। प्रमेह, कुष्ट, फिरंग उपदंश, और रक्तके विकार वातामकोद्भवे तैले मर्दयेच चतुःपले । त्रिगुणे माक्षिफे शुद्धे विधिना मेलयेद्भिषक् । नष्ट हो जाते हैं । यह परमोत्तम उशबावलेह एक समय स्नेहवश कृपा करके हमारे मामा केशवानंदजीने कर्षमानं भक्षयित्वा कोणतोयं ततः पिबेत् । कथन किया था । वसन्ते भक्षयेन्नित्यं प्रातःकाले यथावलम ॥ घृतं मुद्ग तथा शालीन्भक्षयेन्मतिमान्नरः। (इस योगकी यह टीका उक्त श्लोंकों के अम्लं तैलं दधि दुग्धं गुडं चापि परित्यजेत् ॥ रचयिता श्रीयुत् पं. रामप्रसादजी वै. पं. की ही नानायोगेषु योगोयमुत्तमः परिकीर्तितः। की हुई है।) मेहं कुष्ठं फिरङ्गं हि उपदंशं च नाशयेत् ॥ । इति उकारायवलेहप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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