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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ उकारादि अथ उकारादिचूर्णप्रकरणम् (९१०५) उच्चटादिचूर्णम् (९१०७) उदीच्थादिकल्कः (न. मृ. । त. ३ ; वृ. मा.. । वाजीकरणा.) । ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३) उच्चटाचूर्णमप्येवं क्षीरेणोत्तममुच्यते । उदीच्यधान्यस्य जलेन कल्कं शतावर्युच्चटाचूणे पेयमेव मुखार्थिना ॥ पाने हितं पाचयतेऽतिसारम् । उटिंगणके बीजोंका चूर्ण ( मिसरी मिले हुवे | तृष्णापहं दाहविनाशनं च धारोष्ण ) दूध के साथ पीनेसे वीर्य पुष्ट होता है । सशूलहिकासु विनाशनं स्यात् ।। (मात्रा-३ माशा) सुगन्धबाला और धनिया समान भाग लेकर इसी प्रकार शतावर और उटिंगणके बीजोंका। पानीके साथ पीसकर पीनेसे अतिसार, तृष्णा, दाह, समान भाग मिलित चूर्ण भी वीर्यको पुष्ट करता है। शूल और हिक्का का नाश तथा आमका पाचन (९१०६) उत्पलादियोगः होता है। ( भै. र. । स्त्रीरोगा.) (९१०८) उदुम्बरपर्णीमूलयोगः कन्दं रक्तोत्पलस्याथ रक्तकासमूलकम् । करवीरस्य मूलानि तथा रक्तोडूमूलकम् ।। (रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) बकुलस्य तथा मूलं गन्धमातृकजीरको। स्तम्भयति गर्भमुदुम्बररक्तचन्दनकञ्चव समभागश्च कारयेत् ॥ पर्णीमूलं जलेन परिपीतम्। तण्डुलोदकसम्पिष्टं रक्तमृत्राय दापयेत् । ज्येष्ठजलपिष्टमेतत्तत्कुरुते योनिमध्यगतम् ।। योनिशूलं कटिशूलं कुक्षिशूलञ्च नाशयेत् ॥ ___दन्तीमूलके चूर्णको पानी के साथ पीनेसे या योनिशूलहरः प्रोक्तः उत्पलादिन संशयः ।। । चावलोंके पानी में पीसकर (कपड़ेमें बांधकर) योनिमें लाल कमलकी जड़, लाल कपासकी जड़, रखनेसे गिरता हुवा गर्भ स्थिर हो जाता है। कनेरकी जड़, लाल गुडहलकी जड़, मौलसिरीकी | (९१०९) उर्वारुयोजकल्कः जड़की छाल, गंधमात्रा, जीरा और लाल चन्दन (यो. र. । मूत्रकृच्छा. ; व. से. । मूत्रकृच्छ्रा.) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । उर्वारुवीजकल्कं च श्लक्ष्णं पिष्ट्वाऽक्षसम्मितम् । ___ इसे चावलोंके धोवनमें पीसकर पिलाने से धान्याम्ललवणैः पेयं मूत्रकृच्छ्रविनाशनम् ॥ रक्तमूत्र, योनिशूल, कमरको पीडा और कुक्षिशल । ककड़ीके बीजोंके ११ तोला चूर्णको कांजीमें का नाश होता है । पीसकर सेंधा नमक मिलाकर पीनेसे मूत्रकृच्छू नष्ट (मात्रा--१-१॥ माशा।) होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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