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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६४ www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः अथ इकारादिनस्यप्रकरणम् (९०९२) इङ्गुदीफलनस्यम् ( र. चि. म. । स्त. ९ ) इङ्गुदीफलचूर्णस्य नस्येन च शिरोगताः । पतन्ति कृमयो दुष्टाः श्वेता रक्ताश्च ये स्थिताः || इति इकारादिनस्यप्रकरणम् अथ इकारादिरसप्रकरणम् (९०९३) इच्छाभेदोरस: (१) ( र. प्र. सु. । अ. ८; शा. सं. । खं. २ अ. १२; २. का. . । उदरा. ) शुण्ठीपिप्पलीटङ्कणं सदरदं प्रत्येकमेवाक्षकं माहा पलमात्रका कथिता दन्तीफलं तत्समम् । चूर्णीकृत्य समांशकानि सततं गोदुर्भावयेत् ags: सितया समं रसवरः संभक्षितो रेचकृत् ॥ सोंठ, पीपल, सुहागे की खील और शुद्ध हिंगुल ११-११ तोला, चोक ५ तोले और शुद्ध जमालगोटा ५ तोले लेकर सबके चूर्णको एकत्र मिलाकर गोदुग्धमें खरल करके २-२ या ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लें । इनमें से एक गोली मिश्री के साथ खाने से विरेचन होता है । ( अनुपान --- शीतल जल | ) इंगुदी (हिंगोट ) फलका बारीक चूर्ण करके उसकी नस्य लेनेसे सिरके खेत और लाल कृमि निकल जाते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ इकारादि (९०९४) इच्छाभेदीरमः (२) (र. का. घे. | रा.) शुण्ठीपारदणं सुविमलं सेहुण्डकं तत्सम जैपाले त्रिगुणं तदेव निभृतं दन्तीजले घर्षितम् । तच्चात्र त्रिवृताजले विलुलितं सूर्याशुभिः शोषितम् aisi गुडसम्मितो मुनिवरैरिच्छा विभेदी स्मृतः ॥ सन्निपाते तथा बाते महाजीर्णे समुद्भवे । आमाजीर्णे तथाsssमाने दातव्यं रक्तिकात्रयम् । शर्करादधिभक्तं च पथ्यं देयं विचक्षणैः ॥ For Private And Personal Use Only साँठका चूर्ण, पारद ( रससिदूर ), सुहागे की खाल और हुंड ( थूहर ) का दूध १-१ भाग तथा शुद्ध जमालगोटा ३ भाग लेकर सबको एक खरल करके दन्तीमूलके क्वाथमें १ दिन घोटें और फिर १ दिन निसोतके क्वाथमें खरल करके धूप सुखा लें । इसे गुड़ साथ देनेसे विरेचन होता है ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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