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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रयोज्यमिच्छद्भिरिदं यथा परिशिष्ट अवलेहमकरणम् ] जुगाक्षीर्याः सपिप्पल्याः स्थाप्यं संमूच्छितं च तत् ॥ चौमार्तिक कुम्भे मासार्धं घृतभाविते । मात्रासिमां तस्य तत ऊर्ध्वं प्रयोजयेत् ॥ हेमताम्रप्रवालानामयसः स्फटिकस्य च । मुक्तावैदूर्यशङ्खानां चूर्णानां रजतस्य च ॥ प्रक्षिप्य पोडशीं मात्रां विहायायासमैथुनम् । जीर्णे जीर्णे च भुञ्जीत पष्ठिकं क्षीरसर्पिषा ॥ सर्वरोगप्रशमनं वृष्यमायुष्यमुत्तमम् । सच्चस्मृतिशरीरामिबुद्धीन्द्रियवलमदम् || परमूर्जस्करं चैव वर्णस्वरकरं तथा । विषालक्ष्मीप्रशमनं सर्ववाचोगतप्रदम् ।। सिद्धार्थतां चाभिनवं वयश्व जामियत्वं च यशश्च लोके । रसायनं ब्राह्ममुदारवीर्यम् इतीन्द्रोक्तरसायनमपरम् || इन्द्र ऋषियोंसे कहा - दिव्योषधियों के प्रभा वको आपके समान संयमी पुरुष ही सहन कर सकते हैं । औषधियोंके प्रभावसे अपने अपने कर्मों - तपश्चर्यादि में संलग्न आप लोगोंका हर प्रकार से कल्याण होगा । उत्तम क्षेत्र (हिमालय) में उत्पन्न होने वाली इन दिव्यौषधियोंके प्रभावको संयमी और प्रयत्नशील गृहस्थी तथा वानप्रस्थी भी सहन कर सकते हैं परन्तु साधारण पुरुष नहीं । जो औषधियां मध्यमक्षेत्र में उत्पन्न होती हैं और का प्रभाव भी मध्यम होता है उन्हें भी उपरोक्त विधिसे ही सेवन करना चाहिये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ जो लोग इन दिव्यौषधियों की खोज नहीं कर सकते और न इनके प्रभावको ही सहन कर सकते हैं तथापि सुख चाहते हैं उनके लिये यहनिम्न लिखित रसायनप्रयोग उत्तम है - बल्य गण, जीवनीयगण, बृंहणीय गण तथा वयस्थापन गण एवं खैर, असन, खजूर, महुवा, नागरमोथा, नीलोत्पल, मुनक्का, बायबिडंग, बच, चित्रक, शतावर, पयस्था, ( क्षीर काकोली ), पीपल, अगर, ऋद्धि, नागबला (गंगेरन), हल्दी, धव, त्रिफला, कटेली, विदारीकन्द, लाल चन्दन, ईख, कासकी जड़, गम्भारी और तिनिश; इनके रस और पलाश (ढाक) का क्षार - जल १० - १० तोले लें । (जिनके स्वरस न मिलें उनके क्वाथ ले लेने चाहियें ) । इन सबसे चार गुना गोदुग्ध, १६ सेर तिलका तेल और १६ सेर गोघृत लेकर सबको एकत्र मिला कर मन्दाग्नि पर पावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो स्नेहको छान ले तत्पश्चात् उसमें अपने हो स्वरसमें १०० बार भावित किये हुवे आमलोंका चूर्ण ४ सेर, नवीन शहद ४ सेर, खांड ४ से२, सलोचनका चूर्ण १ सेर और पीपलका चूर्ण १ सेर मिलाकर मिट्टी चिकने पात्र में भरकर रखदें और १५ दिन पश्चात् उसमें स्वर्ण, ताम्र, प्रवाल, लोह, स्फटिकमणि मोती, वैदर्यमणि, शंख और चांदी इनका चूर्ण उपरोक्त सम्पूर्ण औषधसे १६ वां भाग ( या ५ तोले ) मिलाकर अग्निबलोचित मात्रानुसार सेवन करें । For Private And Personal Use Only इसके सेवनकालमें परिश्रम और मैथुनसे परहेज़ करना चाहिये तथा औषधके पचने पर साठी चावलों का भात घी और दूधके साथ खाना चाहिये ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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