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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ आकारादि अमलतास, धाय, कर्णिकार (छोटा (९०१७) आरग्वधादिक्वाथः (३) अमलतास ), धव, अर्जुन, सर्ज (रालका ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३२) वृक्ष), पलास, कदम्ब, नीम, कुड़ा, बासा (अडूसा), खैर और मूर्वा; इनकी जड़ें समान भाग आरग्वधफलगर्भ दुरालभा धान्यकशतावर्यः । लेकर आठ गुने पानीमें पकावें और आठवां भाग पाषाणभेदपथ्याक्वाथोऽयं मूत्रकृच्छे स्यात् ।। रहने पर छान लें। इसमें घी मिलाकर पीनेसे कुष्ठ, ____ अमलतासका गूदा, धमासा, धनिया, शतावर, विसर्प, दद्रु और विचर्चिकाका शीघ्र ही नाश हो पाषाणभेद (पखानभेद) और हर्र समान भाग जाता है। लेकर क्वाथ बनावें। (९०१६ ) आरग्वधादिक्वाथः (२) यह क्वाथ मूत्रकृच्छूको नष्ट करता है। (ग. नि. । ज्वरा.) (९०१८) आईकस्वरसः आरग्वधो मुष्ककश्च मदनः स्वादुकण्टकः। (शा. सं. । खं. २ अ. १) सप्तपर्णस्तथोशीरं शिरीषः खदिरास्नौ ॥ वत्सकः प्रग्रहो मूर्वा नक्तमालो वितुन्नकः । आईकस्वरसः क्षौद्रयुक्तो वृषणवातनुत् । पटोलपिचुमन्दौ च हरिद्रा कटुरोहिणी ॥ श्वासकासारुचीहन्ति प्रतिश्यायं व्यपोहति ॥ त्रिफला देवकाष्ठं च भद्रमुस्तं निदिग्धिका । ___अदरकके स्वरसमें शहद मिलाकर पीनेसे अण्डकोषोंकी वायु, श्वास, कास, अरुचि और एतान्याहृत्य तुल्यानि कषायमुपसाधयेत् ॥ तं कषायं पिबेद्युक्त्या सन्निपातोद्भवे ज्वरे। प्रतिश्यायका नाश होता है। कासे श्लेष्मप्रसेके च श्वयथावरुचौ तथा ॥ (मात्रा-३ माशेसे ६ माशे तक ।) अमलतासका गूदा, सुष्कक (मोखावृक्ष)की (९०१९) आर्द्रकादिस्वरसः छाल, मैनफल, गोखरु, सतौनेकी छाल, खस, सिर (वृ. मा.। कर्णा.) सकी छाल; खैरसार, असना वृक्षकी छाल, इन्द्रजौ, छोटे अमलतासकी छाल, मूर्वा, करंज.धनिया, पटोल आर्द्रकसूर्थावर्तकसौभाअनमूलमूलकस्वरसाः। नीमकी छाल, हल्दी. कुटकी, त्रिफला, देवदारु, त्रिफला. देवदास. मधुसैन्धवतैलयुताः पृथगुष्णाः कर्णशूलहराः॥ नागरमोथा और कटेली समान भाग लेकर क्वाथ ___अदरक, हुलहुल, सहजनेकी जड़ और मूली बनावें। इनमेंसे किसीके भी स्वरसमें शहद, सेंधा नमक ___ यह क्वाथ सन्निपात ज्वर, खांसी, कफ प्रसेक | और तेल मिलाकर उष्ण करके कानमें डालनेसे शोथ और अरुचिको नष्ट करता है। कर्ण शूल नष्ट होता है। इत्याकारादिकषायप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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