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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] परिशिष्ट ४६५ और न अधिक गाढ़ा हो न पतला रहे तब उतार । मिलाकर लुगदी सी बना लें । तदनन्तर सेहुंड कर गरम गरम को ही लोहपात्रमें भरकर रख दें। । (थूहर) के डंडेको एक तरफसे खोखला करें और इसे भगन्दर, अर्श और नाड़ी ब्रणमें विधि उसमें वह लुगदी भरकर उसके मुंहको उसीके वत् प्रयुक्त करना चाहिये । (थूहरके ) कटे हुवे टुकड़ेसे बन्द करके उसपर कपड़मिट्टी करके कण्डोंकी अग्निमें पकावें । (९००४) अपामार्गादियोगः । जब ऊपर की मिट्टीका रंग लाल हो जाय (व. से. । स्त्रीरोगा.) तो उसमें से वह लुगदी निकाल कर उसे कपड़ेमें रखकर निचोड़ें। इससे जो रस निकले उसे मन्दोष्ण अपामार्गशिफां योनिमध्ये निःक्षिप्य धार्यते । सुखं प्रमूयते नारी भेषजस्यास्य योगतः ॥ करके कानमें डालनेसे कर्णशूल नष्ट होता है । प्रसवके समय अपामार्ग (चिरचिटे) को जड़को (९००७) अर्शनाशकयोगः योनिमें रखनेसे सुखपूर्वक प्रसव हो जाता है ।। (र. र. स. । उ. अ. १५) (९००५) अरणीक्षारयोगः । देवदाल्याः कषायेण ह्यनं शौचमाचरेत् । (ग. नि. । शोथा. ३३) गुदनिःसरणं चापि शान्ति चायाति नान्यथा ॥ अरणीक्षारसम्मिश्रं तोयं क्वथितशीतलम् । देवदाली (बिंडाल) के कषायसे शौच करनेसे त्रिदिनं पानतोऽभ्यङ्गाच्छोफं हन्त्युदरोद्भवम् ।। (मलमार्ग धोनेसे) अर्श तथा गुदानःसरण (काच अरनीका क्षार मिलाकर पकाकर ठंडा किया निकलना) को आराम हो जाता है। हुवा पानी पीने तथा उसीकी मालिश करनेसे ३ (९००८) अर्शीहरयोगः दिनमें उदरशोथ नष्ट हो जाता है। ( र. र. स. । उ. अ. १५) (९००६) अर्काङ्कुरादियोगः पीलुतैलेन संलिप्ता वर्तिका गुदमध्यगा । (व. से. । कर्णरोगा.) घातयत्यर्शसां शीघ्रं सकलां वेदनां तथा । अर्काकुरानम्लपिष्टांस्तैलाक्ताल्लवणान्वितान् । रूईकी बत्तीको पीलुके तैलमें मिगोकर गुदामें सन्निसाध्यात्स्नुहीकाण्डे कौरिते तच्छदावृते ॥ रखनेसे अर्श और उसकी वेदना नष्ट हो जाती है। पुटपाककमात्स्विन्नं पीडयेदारसागमात् ।। (९००९) अश्वगन्धाक्षीरम् सुखोष्णं तद्रसं कर्णे दापयेच्छूलशान्तये ॥ ( ग. नि. । वन्ध्या. ५) आकके अंकुरों में थोड़ासा सेंधानमक मिला- अश्वगन्धाकपायेण क्वथितं शीतलं पयः । कर कांजीके साथ पीसें और फिर उसमें तेल | पीत्वा कान्तं समाश्लिष्य ऋतौ वन्ध्या प्रसूयते !! For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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