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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ भारत - भैषज्य रत्नाकरः के भीतर भरदें और उस पर मिट्टीका लेप करके सुखा लें। इसे गोशाला में एक हाथ गहरा गढ़ा खोदकर दबा दें और १ मास पश्चात् निकाल लें । इस प्रकार अभ्रक पारद के समान प्रवाही हो है । www.kobatirth.org (८९४२) अभ्रकद्रुतिः (५) ( आ. वे. प्र. । अ. ४ ; रसे. चि. म. 1 अ. ४ ) निजरसवहुपरिभावित - सुराली चूर्णमानवापेन । द्रवति पुनः संस्थानं भजते गगनं न कालेऽपि ॥ देवदाली (बिडाल) के चूर्णको उसीके रसकी बहुतसी भावनाएं देकर सुखा लें । अभ्रक (अभ्रक सत्व) को तपाकर उसमें यह चूर्ण डालने से वह पतला हो जाता है और फिर कभी कड़ा नहीं होता। ( ८९४३) अभ्रक भस्मयोगः (१) ( र. का. . । अम्लपित्ता. ) उष्णोदाम्बुरुतैलर से निमग्नं कृष्णाभ्रकं वसनबद्धमहानि सप्त । पिष्ट्वा च किञ्चिदुपशोप्य पलममार्ण न्यग्रोधदुग्धपळयुक्तमथो पुटेत्तत् ॥ माषाष्टगन्धकपृथक् त्रिकटोर्वरायाः संयोज्य चाज्यमधुनी च चिरं विमृद्य । तप्ताम्बुपानमुपयुक्तमिदं निहन्ति शूलाम्लपित्तत्रमनानि हिताशिनोऽदः ।। कृष्णाभ्रकको कपड़े की पोटली में बांधकर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ अकारादि चावलों के मांड, अरण्डी के तेल और अरण्डी के रस में सात दिन भिगोए रक्खें । (मांड आदि तीनों पदार्थ बराबर बराबर लेकर एकत्र मिला लेने चाहियें |) इसके पश्चात् उसे पीसकर कुछ सुखाकर उसमेंसे ५ तोला लें और उसमें ५ तोले बड़का दूध मिलाकर खरल करके टिकिया बनावें । तथा शरावसंपुटमें बन्द करके गज पुटमें फूंक दें । इसी प्रकार कई पुट देकर भस्म बनायें। तत्पश्चात् उसमें ८ मा शुद्ध गंधक तथा ८-८ माशे सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा और आमला ; इनका चूर्ण मिलाकर शहद और घी के साथ बहुत देर तक खरल करें । इसे उष्ण जलके साथ सेवन करने और पथ्य पालन करनेसे शूल, अम्लपित्त और वमनका नाश होता है। ( ८९४४) अभ्रक भस्मयोगः (२) ( न. मृ. । त. ; या. र. ; र. रा. सु. । प्रमेहा. ; वृ. यो त । त. १०३ ) निश्चन्द्रमभ्रक भस्म सवरा रजनी रजः । मधुना लीढमचिरात्ममेहान्विनिवर्तयेत् ॥ निश्चन्द्र अभ्रक भस्म, हर्र, बहेड़ा, आमला और हल्दी समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें । इसे शहद के साथ चाटने से प्रमेहरोग शीघ्रही हो जाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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