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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमनप्रकरणम्] परिशिष्ट .४२५ इसे ( पानीमें घिसकर) आंखमें लगानेसे सर्व | सम्मर्दयेसिन्धुफलेन कांस्ये दोषज ज्वर, और दाहादि उपद्रव नष्ट होते हैं । तेनाअनेनाजितलोचनस्य ॥ (८९०५) अपराजितावतिः सयोऽक्षिनिस्यन्दमकाण्डकण्डू स्तथाऽधिमन्यानपि इन्ति सत्यम् ।। (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) इमलीके ताजे पत्तोंको (धोकर ) अरण्डके अभयानां पलं दद्यात्तुत्थकाच शुभात्पलम् ।। पत्तोंमें लपेटकर गोलासा बनावें और उस पर तायेशैलार्धकर्षश्च तत्सम मरिच सितम् ॥ | मिट्टीका लेप करके कण्डोंकी मन्दाग्नि में पाक करें। अभयावर्तिरित्येषा जलपिष्टाऽपराजिता ।। जब ऊपरकी मिट्टीका रंग लाल हो जाय तो गोले. कण्डतिमिरकाचार्मपिल्लाभिष्यन्दनाशिनी ॥ मेंसे इमलीके पत्तोंको निकालकर पीसकर रस निकाल ___ हर्रका चूर्ण ५ तोले, शुद्ध नीलाथोथा ५ । लें। कांसीके पात्रमें यह रस डालकर उसमें समन्दर तोले, रसौत ७॥ माशे. और सफेद मिर्चका चूर्ण फल घिसकर आंखमें लगानेसे आंखसे पानी बहना, ७॥ माशे लेकर सबको (पानीके साथ ) एकत्र ! नेत्रकण्डू और अधिमन्थका नाश होता है। खरल करके वर्तियां बनावें। इसे पानी में घिसकर (८९०८) अर्धनारीनटेश्वरो रसः आंखमें लगानेसे नेत्रकण्डू, तिमिर, काच, अर्म, पिल्ल तथा नेत्राभिष्यन्दका नाश होता है। (र. स. फ. । उल्ला. ४ ; र. का. धे. । ज्वरा.) (८९०६) अपामार्गमूलायञ्जनम् निम्बबीज शिलाऽजाजी' धूमं कृष्णा समां शकम् । (रा. मा. । नेत्र रोगाः ३) कारल्ल्या रसैर्भाव्यमेकविंशति वारकान् ॥ प्रत्यक्पुष्पीमूलं ताम्रपये भाजने ससिन्धुत्थम् । यत्पार्श्वतोऽअयेन्नेत्रे ज्वरं तत्पाजं जयेत् । मधुसहितं निघृष्टं नयनप्रकोपं हरत्याशु ॥ | अर्धनारीनटेशाहो रसः कौतुककारकः ॥ __ अपामार्ग (चिरचिटे) की जड़को ताम्रपात्रमें | नीमके बीज (निबौलीकी गिरी ), शुद्ध मनसिल, सेंधा नमकके चूर्ण और शहदके साथ घिसकर जीरा ( पाठान्तरके अनुसार जावित्री), घरका धुवां, आंखमें लगानेसे नेत्राभिष्यन्दका शीघ्र ही नाश हो और पीपल समान भाग लेकर सबके चूर्णको एकत्र जाता है। मिलाकर करेलेके रसकी २१ भावना दें। (८९०७) अम्लिकाअनम् इसका जिस ओर की आंखमें अंजन किया (बृ. यो. त.। त. १३१) जायगा उसी ओरका ज्वर जाता रहेगा। यह एक वातारिपत्रे पुटपाचितानां अद्भुत प्रयोग है। द्रवं दलानां वरमम्लिकायाः। १ जातीति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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