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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [अकारादि उल्लक (उल्लू) की हड्डी, गिद्धकी विष्ठा । (८८९२) अशोहरलेपः (५) और मनुष्य की हड्डी समान भाग लेकर (पानीके (र. र. स. । उ. अ. १५) साथ ) बारीक घिसकर नाभिके चारों ओर चार अंगुल तक लेप करनेसे अर्शके मस्से नष्ट हो जाते देवदाल्याश्च बीजानि सैन्धवेन सुचूर्णितम् । हैं और फिर कभी नहीं होते। आरनालेन लेपोऽयं मूलरोगनिकृन्तनः ।। देवदाली (बिंडाल) के बीज और सेंधा (८८९०) अर्शीहरलेपः (३) नमक बराबर बराबर लेकर दोनोंको कांजीके साथ (ग. नि. । अर्शो. ४ ; र. चि. म. । स्त. ९) । पीसकर अर्शके मस्सों पर लेप करनेसे वे नष्ट हो | जाते हैं। शिरीषस्य तु मूलानि लागलक्यास्तथैव च । एतेन नाभिलेपेन सर्वतश्चतुरझुलात् ॥ (८८९३) अर्शीहरलेपः (३) सिद्धोऽर्शसां प्रयोगोऽयं न तु भूयो भवन्ति हि॥ (र. चि. म. । स्त. ९) सिरसकी जड़ और कलियारीको जड़ समान देवदाल्यास्तु बीजानां पीतायास्तैलमाहरेत् । भाग लेकर दोनोंका ( पानीके साथ ) बारीक पीस- पातालयन्त्रतस्तेन लिप्यन्ते गुदानि ॥ कर नासिके चारों ओर चार अंगुल तक लेप करदें अशांसि वक्राकाराणि वक्रपीडायराणि। इससे अर्श समूल नष्ट हो जाता है और फिर नहीं एकपक्षमयोगेण तानि सर्वाणि यान्ति च ॥ होता। यह एक सिद्ध प्रयोग है। न भूयः सम्भकत्येव तस्य वंशे कदाचन ।। (८८९१) अर्शीहरलेपः (४) देवदाली (बिंडाल ) के बीजोंका पाताल (र. चि. म. । स्त. ९) यन्त्रसे तैल निकालें। अर्शके मस्सों पर इसे लगानेशिरीषबीज द्वौ क्षारौ लागलीसैन्धवं तथा । से १५ दिनमें वे समूल नष्ट हो जाते हैं और ' फिर कभी उस रोगीको या उसकी सन्तानको स्नुहीक्षीरेण पिष्टानि गर मत्रेण पेषयेत् ॥ ( पितृ दोषसे ) नहीं होते। नाभिलेपस्तु कर्तव्यस्त्रिसारं सान्ति सर्वजाः ।। ____ सिरसके बीज, जनाखार, सज्जीखार, कलियारी (८८९४) अवल्गुजादिलेपः की जड़ और सेंधा नमक; इनके समान भाग (व. से.। कुष्टा.) मिलित बारीक चूर्णको स्नुही (सेहुंड-थूहर ) के कडवमवलगुजबीजं हरितालचतुर्थभागसम्मि. दूधमें खरल करके सुखा लें। श्रम् । इसे गोमूत्रमें पीसकर नामि पर लेप करनेसे मनःधिलातोलका गुनाफलमनिमूलश्च ॥ तीन बारमें ही सर्व दोषज मस्से नष्ट हो जाते हैं। गोमुत्रेण च पिष्टं सवर्णकरणं परं चित्रे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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