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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] परिशिष्ट ४०५ इनके सेवनसे कास, गलरोग, श्वास, प्रति २ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर श्याय, पीनस, अपस्मार, उन्माद और सन्निपानका पकावें। जब २ सेर शेष रह जाय तो उसमें नाश होता है। अतीस, देवदारु, सोया, धनिया, गंधतृण, सोंठ, (८८३७) अमृतवटक: मुलैठी, इन्द्रायगकी जड़, पीपल, सोठ, मिर्च, पीपल, (हा. सं. । स्था. ३ अ. ८) बायबिडंग, नागरमोथा, हपुषाकेफल, मूर्वा, हल्दी, धात्रीफलानां रसप्रस्थमेकं कुटकी, धमासा, पोखरमूल, इन्द्रजौ, कूठ, अजमोद ___ प्रस्थं तथा चेक्षुरसं विदध्यात् । और तुलसी--पत्र; इनका चूर्ण ५-५ तोले एवं प्रस्थं तु कूष्माण्डरसपदिष्ट पुराना गुड़ सबसे दो गुना मिलाकर पुनः पकावें मार्क रसं प्रस्थाविमिश्रमेकम् ॥ और गाढ़ा हो जाने पर अग्निसे नीचे उतार कर एकीकृतं मन्दहुताशनेन घीके हाथसे गोलियां बना लें। पाच्यं भवेत्पादमशेषमेति । (मात्रा-६ माशे) विमिश्रयेदौषधसमेतत् इसके सेवनसे कामला, अर्श, पाण्डु, ज्वर, शोथ, पलैकमात्रं विपचेच्च पश्चात् ।। शोप, ग्रहणीरोग, बिद्रवि और कुष्ठको नाश होता है । भृङ्गी सुराहं शतपुष्पधान्यं ( अनुपान----उष्ण जल ।) सुगन्धशुण्ठीमधुकं विशाला । (८८३८) अशनादियोगः सपिप्पलीकं सकटुत्रयं च (व. से. । बालरोगा.) विडङ्गमुस्ता हपुषा फलानि ॥ अशनस्य तु पुष्पाणि इलक्ष्णचूर्णानि कारयेत् । मृर्वा हरिद्रा कटुरोहिणीनां गुटिकां कारयेद्वैवस्तां च भक्तस्य वारिणा । दुरालभापौष्करवत्सकानाम् । एतां पश्चात्तके दद्याद्वालेषु मतिमान्भिषक कुष्ठाजमोदा सुरसादलानि चूर्ण स्वमीषां विनियोजनीयम् ॥ असना वृक्षके फूलोंको बारीक पीसकर चावगुडं पुराणं द्विगुणं तु मध्ये लोंके धोवनसे खरल करके गोलियां बना लें । घृतेन चोक्तं वटिकां विवन्ध्येत् । इनके सेवन से बालकोंका 'पश्चात रुज" भक्षणाजयति कामलार्श नामक रोग नष्ट हो जाता है। पाण्डुरोगमतिदारुणज्वरान् ।। १-बालकोंकी गुदामें एक विशेष प्रकारका शोफशोषग्रहणी विजन्नति व्रण होता है जिसका आकार जोक (जलौका) के विद्रधीन हरति कुष्ठमेहकान् ॥ पेटके समान और रंग लाल होता है तथा उसमें आमलेका रस २ सेर, ईखका रस २ सेर, दाह होती है और बालकको ज्वर आ जाता है, कुम्हड़े (पेठे) का रस २ सेर और आकका रस | उसे 'पश्चात रुज' कहते हैं । इत्यकारादिगुटिकाप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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