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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ अकारादि अथाकारादिगुटिकाप्रकरणम् (८८२८) अग्निमुखवटी दारुहल्दीकी जड़, अंकोलकी जड़, पाठाकी (ग. नि. । गुटिका. ४) जड़, कुड़ेकी छाल, सेंमलका गोंद, शाल वृक्षका हिङ्गुभागो भवेदेको वचा च द्विगुणा भवेत् । | गोंद, धायके फूल, लोध और अनारकी छाल; इनका त्रयो भागा विडङ्गानां सैन्धवं च चतुर्गुणम ॥ समान भाग चूर्ण लेकर सबको चावलोंके धोवनके अजाज्याः पश्चभागाश्च पड़भागाश्चैव नाग- साथ खरल करके १।-१। तोलेके वटक बना लें। रात ।। . इनमें से १-१ वटक प्रातः काल शहदमें मरिचस्य सप्त भागाः पिप्पली चाष्टभागिका ॥ मिलाकर चावलोंके धोवनके साथ पीनेसे समस्त कुष्ठं नवगुणं प्रोक्तं दशभागा हरीतकी। प्रकारके भयंकर अतिसार नष्ट होते हैं । एकादश तथा बहेर्भागा द्वादश दीप्यकात् ।। । ( व्य. मा.-३-४ माशे । ) गुटेन द्विगुणेनैव गुटिकां कारयेदबुधः।। ततो वातरुजार्तानां नित्यमेव प्रयोजयेत् ॥ (८८३०) अङ्कोटवटकः (२) हींग १ भाग, बच २ भाग, बायबिडंग ३ | (भा. प्र. म. खं. २ ; व. से. । अतिसा ) भाग, सेंधा नमक, ४ भाग, जीरा ५ भाग, सेठ पलमकोटमूलस्य पाठां दावीश्च तत्समाम् । ६ भाग, काली मिर्च ७ भाग, पीपल ८ भाग, कूठ | पिष्ट्वा तण्डुलतोयेन वटकानक्षसम्मितान् । ९ भाग, हर्र १० भाग, चीतामूल ११ भाग और छायाशुष्कांश्च तान्कुर्यात्तेष्वेकं तण्डुलाम्बुना। अजवायन १२ भाग लेकर चूर्ण बनावें तथा उसे पेषयित्वा प्रदद्यात्तं पानाय गदिने भिषक् ।। सबसे दो गुने गुड़ में मिलाकर [६-६ माशेको) वातपित्तकफोद्भतान्द्वन्द्वजान्सानिपातिकान् । गोलियां बनालें। हन्यात्सर्वानतीसारान्वटकोऽयं प्रयोजितः ॥ इनके सेवनसे वातव्याधिका नाश होता है। अंकोलकी जड़, पाठा और दारुहल्दी; इनके (८८२९) अङ्कोटवटकः (१) ५-५ तोले चूर्णको एकत्र मिलाकर चावलों के (च. द. ; व. से. । अतिसारा.) धोवनमें खरल करके ११-१। तोलेके वटक बनाकर सदाय॑ङ्कोटपाठानां मूलं त्वक्कुटजस्य च ।। छायामें सुखा लें। शाल्मलीशालनियांसं धातकीलोध्रदाडिमम् ॥ | इनमें से १ १ वटक चावलोंके धोवन में पिष्वाक्षसम्मितान्कृत्वा वटकांस्तण्डुलाम्धुना। | मिलाकर नित्य सेवन करनेसे वातज, पित्तज, कफज, तेनैवमधुसंयुक्तानेकै कान्मातरुत्थितः ।। द्वन्द्वज, और सान्निपातिक अतिसारका नाश पिबेदत्ययमापनो विविसर्गण मानवः।। होता है। अकोटवटको नाम्ना सर्वातीसारनाशनः ॥ (व्यव. मा. ३-४ माशे।) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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