SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूणेप्रकरणम् ] परिशिष्ट ३९७ अजमोद, कचूर, दन्तीमूल, बायविडंग, कूठ, अजमोद १० तोले तथा हल्दी, बिड नमक, तुम्बरु, हरें, बहेड़ा, आमला, चीतामूल, सोंठ, काकंडा- कत्था, उद्भिद् लवण, हर्र, पोखरमूल, भरंगी, इला. सिंगी, निसोत देवदारु, पोखरमूल, विधारामूल यची, सुहागा, कायफल, बासा ( अडूसा )की जड़, और अम्लवेत १-१ भाग एवं घीमें भुनी हुई अपामार्ग (चिरचिटे )की जड़, जवाखार और हींग ३ भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसे इमलीके सज्जीखार ५-५ तोले एवं आकके फूल २० तोले फलोंके रस तथा जम्बीरी नीबूके रसमें १-१ दिन लेकर चूर्ण बनावें और उसे घृतकुमारीके रसमें खरल करके सुरक्षित रखें। खरल करके हाण्डीमें बन्द करके इस प्रकार भस्म इसे धीमें मिलाकर सेवन करनेसे वातज गुल्म | करें कि धूम्र बोहर न निकले । तदनन्तर पीसकर और शूलयुक्त उदररोग नष्ट होता है । (मात्रा-१॥ कपड़छन करके रखें। माशा ।) इसे शहदके साथ चाटनेसे ५ प्रकारकी खांसी (८८०५) अजमोदादिचूर्णम् (२) नष्ट होती है। (यो. र. । स्त्री.) ( मात्रा-४ रत्तीसे १ माशा तक । ) अजमोदा नागरं च पिप्पली जीरकं समम् । (८८०७) अजमोदाचं चूर्णम् तच्चूर्ण सगुडक्षौद्र गर्भिण्या वह्निदीपनम् ॥ (ग. नि. । परि. चूर्णा. ३) ____ अजमोद, सोंठ, पीपल और जीरा समान भाग साजमोदलवणा हरीतकी लेकर चूर्ण बनावें। शृङ्गवेरसहिता च पिप्पली। इसे गुड़ और शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे | मधेन तक्रेण तथोष्णवारिणा गर्भिणीकी अग्नि दीप्त होती है। चूर्णपानमुदराग्निदीपनम् ॥ (मात्रा--१॥-२ माशे।) अजमोद, सेंधा नमक, हर्र, सोंठ और पीपल (८८०६) अजमोदादिभस्मचूर्णम् समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। (ग. नि. । चूर्णा. ३) इसे मद्य, तक्र या उष्ण जलके साथ सेवन अजमोदा पलद्वन्द्वं हरिद्रा च बिडं तथा। करनेसे जठराग्नि दीप्त होती है। सारस्तु खादिरस्यापि औद्भिदं लवणं तथा ॥ (मात्रा-२-३ माशे।) अभया पौष्करं भार्गी एला टङ्कणकट्रफलम् । (८८०८) अजाज्यादियोगः वृषापामार्गयोर्मूलं क्षारयुग्मं तथैव च ॥ ( ग. नि. । श्वयध्व. ३३; वृ. मा. । शोथा.) प्रत्येकं पलमानि रविपुष्पचतुष्पलम् । अजाजिपाठाघनपञ्चकोलचूर्णीकृत्य ततो दद्यात्कुमारीरसभावनाम् ॥ ___ व्याघ्रीरजन्यः सुखतोयपीताः । सान्तधूमं घटे दग्ध्वा चूर्णितं वस्त्रगालितम् ।। शोफ त्रिदोषं चिरजं प्रद्धं मधुना लीढमेतद्धि पञ्चकासनिवारणम ॥ । निघ्नन्ति भूनिम्बमहौषधैर्वा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy