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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२) भारत-भैषज्य रत्नाकर - - - सप्तरात्रात्समुद्धृत्य शोषयेदातपे भिषक् । | देना चाहिये। ततो मज्जानमुद्धृत्य शुचौ भाण्डे निधापयेत् ॥ अमलतास की मज्जा (गूदे) के साथ दूधको जिस समय अमलतासपर फल आवे उस सिद्ध करके उससे धी निकाले, फिर उस धीको समय उसके पके हुए भारी और उत्तम फल लेकर | आमलेके रस और उसके गूदेके कल्कसे सिद्ध रेत में दबादे, फिर उन्हें सात दिन पश्चात् निकाल करके सेवन करे । अथवा उसी धीको दशमूल कर धूप में सुखावे और सूखने पर उनका गूदा | कुल्थी और जौके कषाय तथा निसोत आदिके निकाल कर अच्छे बरतन में भर कर रखदे। कल्कसे सिद्ध करके सेवन करे । अथवा दन्ती [६७] अमलतास के कल्प क्वाथ लेकर उसमें अमलतास की मज्जा (गूदा) (च. सं. । क. अ. ८) २० तोला और गुड़ २० तोला मिलाकर यथा द्राक्षारसयुतो देयो दाहोदावर्त पीडिते । | विधि सन्धान कर ४५ दिन तक रक्खारहने दे चतुवर्षमुखे बाले यावद्वादश वार्षिके ॥ | जब अरिष्ट सिद्ध होजाय तब उसे सेवन करे । चतुरङ्गुल मज्ज्ञस्तु प्रसृतं वाथवाञ्जलिम् । जिस मनुष्य को मधुर, कटु या लवण जिस सुरामण्डेन संयुक्तमथवा कोलसीधुना ॥ प्रकार का खान पान प्रिय हो उसको उसी के दधिमण्डेन वा युक्तं रसेनामलकस्य वा। साथ अमलतास से विरेचन देना चाहिये । कृत्वा शीतकषायं तं पिवेत् सौवीरकेण वा ॥ [६८] अमृत प्राश चूर्णम् चतुरङ्गुलसिद्धाद्वा क्षीराद्यदुदियाघृतम् । (र. र. स. । अ० २१) मज्ज्ञः कल्केण धात्रीणां रसे तत्साधितं पिवेत्॥ ऐलेयकं समूलं हि मुद्गपर्णी तथैव च । तदेव दशमलस्य कुलत्थानां यवस्यच । शतावरी विदारी च वाराहीकन्दमेवच ॥ कषाये साधितं कल्कै सर्पिः श्यामादिभिः पिबेत् मधुकं च मधूकं च तुगाक्षीरी च गोस्तनी। दन्तीकाथेऽजलिं मज्ज्ञः शम्पाकस्य गुडखच। एतानि द्विपलांशानि चूर्णीकृत्य पृथक् पृथक् ॥ दत्वा मासार्धमासस्थमरिष्टं पाययेत च ॥ सरलं चन्दनं चोचमुत्पलं कुमुदं जलम् । यस्य यत्पानमन्नं च हृद्यं खादपि वा कटु। | काकोली क्षीरकाकोली द्वे मेदे जीवकर्षभौ ॥ लवणं वा भवत्तेन युक्तं दद्याद्विरेचनम् ॥ एतेषां चादपलिकं प्रत्येकं शर्करायुतम् । अमलतास को दाद और उटाव से पीडित | ऐलेयकं विदारी च वाराही मुद्पर्णिका ॥ रोगी को दाख के रस के साथ देना चाहिये। | एतेषां खरसैः शुद्धैः शतावर्याश्च मावितम् । चार वर्ष की अवस्था से लेकर बारह वर्ष एतत्सर्प समाहृत्य छाया शुष्कं तु सप्तधा ॥ तक की उम्र वाले के लिये अमलतासके गूदेकी | इक्ष्वामलकयोः क्षौद्रेर्भावित सप्तधा पुनः । मात्रा १० तोला से २० तोला तक है । उसे | पयसा तु पिबेत्प्रातर्यथाग्निबलवानरः ॥ सुरामण्ड, कोलशीधु, दधिमण्ड, आमले के रस या | अगदाहं शिरोदाहं रक्तपितं सुदारुणम् । शीत कषाय बनाकर अथवा सौवीरक के साथ | शिरोऽक्षिकम्पभ्रमणमित्यादिक गदाञ्जयेत् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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