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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि क्वाथ - जवासा, बेलकीछाल, अजवायन और सोंठ।। घोड़ी की लीदके रसमें हींग मिलाकर पिलाने इनमेंसे एक एक के साथ भी पाठेका क्वाथ करके | से भयङ्कर शूल का भी नाश होता है। अथवा पीनेसे बवासीरकी पीडाका नाश होता है। घृत | इसी रसके या कुल्थीके क्वाथके साथ हींग, सोंठ और तेलमें पहिले वर्णन किये हुए करञ्जवे के प- | और बिडलवण मिलाकर पिलाने से भी शूलका नाश त्तोंको भूनकर सतू के साथ सेवन करने से अधो- | होता है। वायु और मल यथोचित-मार्ग-गामी होते हैं। । [४०] अश्वत्थपत्ररस योगः बवासीर में मदिरामें सैंधा नमक मिलाकर (वृ० नि० २०, भा० ५ । र० पि०) अथवा सीधु और सौवीरकसुरामें गुड़ मिलाकर अश्वत्थपत्राग्ररसात् षडंशो पीना लाभदायक है। ___ बोलोऽथ तस्माद् द्विगुणं मधु स्यात् । [३७] अश्वत्थादि-प्रक्षालनम् । रक्तप्रवाहं हृदयस्थितं वा (वृ० नि० र० उप०) वातो यथाभं हरते तथैव ॥ अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षवटवेतसजः शृतः । पीपल (अश्वत्थ) के पत्तों के अग्रभागका रस व्रणशोथोपदंशानां नाशकः क्षालने स्मृतः॥ । १ भाग, बोलणूद ६ भाग, मध १२ भाग सबको पीपल (अश्वत्थ), गूलर, पिलखन, बड़ और | मिलाकर पीने से रक्तप्रवाह और हृदयमें संचित बेतके क्वाथ से धोनेसे धाव, सूजन और उपदंश | रक्त दूर होता है जैसे पवन बादलों को नष्ट (आतशक) का नाश होता है । करता है। [३८] अश्वगंधादि गणः [४१] अश्वत्थवल्कलादि योगः (यो २० । वा० व्या०) (वृ० नि० र० । छर्दि) वाजिगन्धा बलास्तिस्रो दशमूली महौषधम् । | अश्वत्थवल्कलं शुष्कं दग्धं निर्वापितं जले। गृधनख्यौ च रास्ना च गणो मारुतनाशनः ॥ तअलं पानमात्रेण छर्दि जयति दुर्जयाम ॥ असगंध, खरैटी, कंधी, गंगेरन, दशमूल, सोंठ, पीपलकी सूखी छालको जलाकर पानीमें बुदो प्रकार की नखी और रास्ना । यह गण वायु झाकर उस पानी को पीने से प्रबल वमन (छर्दि) नाशक है। का नाश होता है। [३९] अश्वीपुरीषरस योगः [४२] अशोक काथः (वृ० नि० र० । शूले) (वृ० नि० र० । भा० ६ स्त्री० रो०) तुरंगीपुरीपोदकं हिंगुयुक्तं अशोकवल्कलक्काथशृतं दुग्धं सुशीतलम् । ____ महाशलहारि प्रदिष्टं भिपग्भिः। यथावलं पिबेत्प्रातस्तीवासृग्दरनाशनम् ॥ हिंगुविश्वाचिडैर्वापितोऽसौ । अशोककी छाल के क्वाथ से दूध को पकाकर कुलत्थोद्भवो वा कपायः प्रदिष्टः ॥ ठंडा करके बलके अनुसार प्रातःकाल पीने से प्रबल For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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