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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारादि-स (३१९) - [१०५०) कांस्यपिष्टिका रसः । ___ भस्मविधि---कांसी के पत्रों पर आक के दूध (र. रा. सु. पाण्डु.) और काजी (या नींबू के रस) में घुटे हुवे समान कांस्येन पिष्टिकां कृत्वा देवदालीरसप्लुताम् । | भाग गन्धक का लेप करके मूसा में बन्द करके तीक्ष्णगन्धरजोयुक्ता युक्त्या हन्यात् हलीमकम्॥ गजपुट देने से २ पुट में कांसी की भस्म होजाती ___ कांसी भस्म को देवदाली के रस में पीस | है। पीतलकी भस्म बनानेकी भी यही विधि है। कर उस में तीक्ष्णलोह की भस्म और शुद्ध १०५२] क्रव्याद रसः गन्धक बराबर बराबर मिलाकर पीसकर यथो । (र. रा. सुंर. र. स. अ. १९, यो. र. अजी. चित विधि से सेवन किया जाए तो हलीमक र. च.; रसे. चि. म. ९ स्तब्कः ) रोग नष्ट होता है। पलं रसस्य द्विपलं वले स्या[१०५१] कांस्यभस्म __छुल्वायसी चार्द्धपलप्रमाणे । (आ. वे. प्र. । अ. १२) संचूर्ण्य सर्व द्रुतमग्नियोगाशोधनम्पत्तलीकृत पत्राणि कास्यरीत्योः प्रतापयेत् । । देरण्डपत्रेऽथ निवेशनीयम् ॥ निपिश्चेत्तप्ततप्तानि तैले तक्रे च कालिके । कृत्वाथ तो पर्पटिकां विदध्यागोमूत्रे च कुलत्थानां कषाये च त्रिधा विधा। लोहस्य पात्रे त्ववपूतमस्मिन् । एवं कांस्यस्य रीतेश्च विशुद्धिः संप्रजायते ॥ जम्बीरज पक्करसं पलानां शतं नियोज्याग्निमथाल्पमल्पम् ॥ विशेष शोधनम् - जीर्णे रसे भावितमेतदेतैः गोमूत्रेण पचेद्यामं कांस्यपत्राणि बुद्धिमान् । | दृढाग्निना विशुध्यन्ति पक्वान्यम्लद्रवेऽपि वा ।। ___ सुपञ्चकोलोद्भववारिपूरैः। सवेतसाम्लैः शतमत्र योज्यं मारणम्-- अर्कक्षीरेण संपिष्टो गन्धकस्तेन लेपयेत् । समं रजष्टङ्गणजं सुभृष्टम् ॥ समेन कांस्यपत्राणि शुद्धान्यलद्रवैर्मुहुः॥ विडं तदद्ध मरिचं समक्ष ततो मूषा पुटे धृत्वा पुटेद्गजपुटेन च। तत्सप्तवारं चणकाम्लकेन । एवं पुटद्वयाद् कांस्यं रीतिश्च म्रियते ध्रुवम् ॥ क्रव्यादनामा भवति प्रसिद्धो ___साधारण शुद्धि-खांसी और पीतलके बारीक रसस्तु मन्थानकभैरवोक्तः ॥ पत्रोंको अग्निमें तपा तपा कर तेल, तक्र, काञ्जी माषद्वयं सैन्धवतकपीतगोमूत्र और कुलथी के क्वाथ में ३-३ बार बुझा __मेतत्सुधन्यं खलु भोजनान्ते । नेसे कांसी और पीतल शुद्ध होजाती है। मात्रातिरिक्तान्यपि सेवितानि विशेष शुद्धिः---कांसी के पत्रों को गोमूत्र । यामद्वयाजारयति प्रसिद्धः ।। और काजी में तेज आग पर १-१ पहर तक कार्यस्थौल्यनिबर्हणोगरहरः सामात्तिनिर्णाशनो पकाने से वह शुद्ध होजाते हैं। गुल्मप्लीहनिसदनो ग्रहणिकाविध्वंसमः सना। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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