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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०८ ) भारत-भैषज्य रत्नाकर रसद्विगुणगन्धकं त्रिगणताम्रलिप्तं पचेद् भृङ्गराजरसे मर्च स्नुहयर्कस्वरसैस्तथा। गृहीतमनकवली खदिरबाकचीनिम्बजैः। रसैः पुटविपाचितं समलयाकषायं पिबे- गुञ्जाद्वयं भक्षयेच्च हृच्छूलं पार्श्वभूलकम्।। त्किलासमरुणं सितं जयति शुद्धतकाशिनः।। आमवाताढयवातादीन् कटीशूलञ्च नाशयेत्। १ भाग पारद और २ भाग गन्धक की कज्जली करके (नींबू के रस में घोटकर) उसे ३ भाग ताब क अग्निञ्च कुरुते दीप्तं स्थौल्यं बारीक पत्रों पर लेप करके शरावसंपट करके पट दें चाप्यपकर्षति।। फिर उसे खैर, बाबची और नीम के रस में घोट कर (जब तक ताम्र भस्म न हो जाय तब तक) पट देते रहें। | रसःकुब्बविनोदोऽयं गहनानन्दभाषितः।। इसे बाबची के क्वाथ के साथ पीने और आहार में केवल शुद्ध छाछ पीने से लाल और सफेद कोढ़ का नाश हो जाता है। पारा, गन्धक, हैड़, हरताल, मीठा तेलिया, कुटकी, त्रिकटा, बोल (मरमकी) और जमालगोटा (१०१८) कीटमर्दो रसः बराबर बराबर लेकर चर्ण करके भांगरे थोहर (सेंड) (र० र० स०। अ० २०) और आक के स्वरम में घोटें। इमे - रती की मात्रानमार मेवन करन से हृदय की शुद्धसूतं शुद्धगन्धमजमोदा विडङ्गकम्। पीड़ा. पनली का दर्द, आमवात, आढ्यवात, कमर का विषमुष्टिब्रह्मबीजं यथाक्रमगुणोत्तरम्।। दर्द और स्थौल्य (चरबी बढ़ जाना) नाट होता तथा चर्णयेन्मधना लेह्यं निष्कैकं कमिजिभवेत। | अग्नि प्रदीप्त होती है। कीटमर्दो रसो नाम मुस्तातोयं पिबेदनु।। (१०२०) कुमारकल्याणो रसः पारा १ भाग, गन्धक २ भाग, अजमोद ३ भाग, (भै० र०। बा.) रो) बायबिडंग ४ भाग, कचला ५ भाग और पलास पापड़ा, (ढाक के बीज) ६ भाग लेकर चूर्ण करें। | सिन्दूरं मौक्तिकं हेम व्योमायो ___इसे एक निष्क (चार माशे) की मात्रानसार शहद में मिला कर मोथे के क्वाथ के साथ सेवन करने से कृमि हेममाक्षिकम्। नष्ट होते हैं। कन्यातोयेन संमर्थ कर्यान्मद्गमिता वटीः।। वटिकां वटिकार्द्ध वा वयोऽवस्थां विविच्य च। (१०१९) कब्जविनोदरसः (र० रा० सं०। वा० व्या०) क्षीरेण सितया साई बालेष विनियोजयेत्।। रसगन्धौ समौ शुद्धौ चाभयातालकं तथा। | कमाराणां ज्वरं श्वासं वमनं विषं कटकिव्योषञ्च बोलबैपालको समौ।। पारिगर्भिकम्। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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