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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१०६) (१०१०) कासश्वासविधूननो रसः ( वृ० नि० २० । कास० ) भारत-मेव- रत्नाकर (१०११) काससंहारभैरवः www.kobatirth.org रसभागो भवेदेको गन्धकाद्द्द्वौ तथैव च । यवक्षारस्त्रिभागः स्याब्रुचकं च चतुर्गुणम् ।। मरीचं पञ्चभागं स्याच्छुद्धं रसविमर्दितम् । कासं पञ्चविधं हन्याच्छ्वासं पञ्चविधं तथा ।। शुद्ध पारद १ भाग, गन्धक २ भाग, जवाखार ३ भाग, सौंचल (काला) नमक ४ भाग और मरिच ५ भाग लेकर चूर्ण करें। यह पांच प्रकार की खांसी और पांच प्रकार के श्वासों का नाश करता है। (र० सा० सं०। कास० ) रसगन्धकताम्राभ्रशङ्खटङ्कणलौहकम्। मरिचं कुष्ठतालीशजातीफललवङ्गकम्।। कार्षिकं चूर्णामादाय दण्डेनामर्द्ध भावयेत् । भेकपर्णी केशराजनिर्गुण्डी काकमाचिका । । द्रोणपुष्पी शालपर्णी ग्रीष्मसुन्दरकं तथा । भाग हरीतकी बासा कार्षिकैः पत्रजै रसैः ।। afai कारयेद्वैद्यः पञ्चगुञ्जाप्रमाणतः । वातजं पैत्तिकं कासं श्लैष्मिकं चिरजन्तथा । । श्रीमद्गहननाथेन काससंहार भैरवः । रसोयं निर्मितो यत्नाल्लोकरक्षणहेतवे ।। वासा शुण्ठी कण्टकारी क्वाथेन पाययेद्बुधः । कासं नानाविधं हन्ति श्वासमुग्रमरोचकम्।। बलवर्णकरः श्रीदः पुष्टिदः कान्तिवर्द्धनः । । पारा, गन्धक, ताम्र भस्म, शङ्ख भस्म, सुहागा, लोह भस्म, मरिच, कूठ, तालीशपत्र, जायफल और लौंग प्रत्येक का १ - १ कर्ष चूर्ण लेकर खरल करके उसे मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी भेद) भांगरा, संभालु, मकोय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गूमा, शालपर्णी, ग्रीष्मसुन्दर (गीमा) भारंगी, हरड़ और बांसे के पत्तों के १-१ कर्ष रस में घोटकर ५-५ रत्ती की गोलियां बनावें । इसे बांसा, सोंठ और कटेली के रस के साथ सेवन कराने से वातज, पित्तज, कफज और पुरानी खांसी, प्रबल श्वास और अरुचि का नाश होता तथा बल, वर्ण, सौन्दर्य, पुष्टि और कान्ति की वृद्धि होती है। (१०१२) कासहरो रसः (र०र० स० अ० १३ ) तारे पिष्टशिलां क्षिप्त्या हरितालाच्चतुर्गुणाम् । वासागोक्षुरसाराभ्यां मर्वितः प्रहरद्वयम् ।। प्रस्विन्नो बालुकायन्त्रे गुञ्जाद्वितयसंमितः । ari त्रिकटुनिर्गुण्डीमूलचूर्णयुतो हरेत् । । चांदी भस्म १ भाग, मनसिल ४ भाग और हरताल १ भाग लेकर २-२ पहर बांसे और गोखरू के स्वरस में खरल करें फिर (शराव संपुट करके) बालुका यन्त्र में स्वेदन करके २-२ रत्ती की गोलियां बनावें । इन्हें त्रिकटे और संभालू की जड़ के चूर्ण के साथ सेवन करने से खांसी का नाश होता है। (१०१३) कासान्तको रसः (र० रा० सं०। कासे) सूतं गन्धं विषं चैव शालपर्णी च धान्यकम् । यावन्त्येतानि चूर्णानि तावन्मात्रं मरीचकम् ।। गुञ्जा चतुष्टयं खादेन्मधुना कास शान्तये ।। पारा, गन्धक, मीठा तेलिया, शालपर्णी और धनिया १-१ भाग, तथा इन सब के बराबर मरिच का चूर्ण लेकर खरल करें। इसे खांसी की शान्ति के लिए ४ रत्ती की For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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