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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-रस (२८९) इनके सेवन से सौगगत कंपवायु (शरीर का गंधक की कजली करें फिर अन्य सब चीजें मिला कांपना) नष्ट होता है। कर ल्हसन, अदरक, सहजना, अरनी की जड़ और [९६३] कम्पवातहरो रसः केलेके रसकी पृथक् ७-७ भावना देकर (र. रा. सुं; । वा. व्या.) खूब घोटें। तकस्य पलान् पंच पलैकं ताम्रचूर्णकम् । । इसे १ वल्ल (२--३) रत्ती) की मात्रानुसार जंबीराणां द्रवैःपिष्टं सूततुल्यं च गंधकम् ॥ सेवन करने से कर्णरोगों का नाश होता है। नागवल्लीद्रवैःपिष्टं ताम्रपिष्टं प्रलेपयेत् । [९६५] कर्पूर रसः (भै. र. । अति.) रुद्ध्वागजपुटे पाच्यंभूधरे यामपंचकम् ॥ हिंगुलमहिफेनश्च मुस्तकेन्द्रयवं तथा । आदाय चूर्णयेत्तुल्यैस्त्र्यूषणैःसममिश्रितम् । जातिफलश्च कर्परं सर्व संमर्य यत्नतः ॥ अर्दोगकंपवाताों भक्षयेत्तत् द्विगुंजकम् ॥ | जलेन वटिका कार्या द्विगुञ्जा परिमाणतः। शुद्ध पारा २५ तोला, तांबे की भस्म ५ | ज्वरातिसारिणे चैत्र तथातिसाररोगिणे ॥ तोला और शुद्ध गन्धक २५ तोला लेकर कजली | ग्रहणीषझकारे च रक्तातिमार उल्षणे । करके जंबीरी नीबू और पान के रसमें घोट कर । उसे तांबे के पत्रों पर लेप करदें फिर शरावसंपुट | अत्र केचिट्टंकणप्येकभागमिच्छति ॥ करके गजपुट में भस्म करें। इसके पश्चात् उसे शुद्ध शिंगरफ, अफीम, नागरमोथा, इन्द्रजौ, पांच पहर तक भूघरयन्त्र में पकावें फिर चूर्ण जायफल और कपूर समान भाग लेकर खरल करके पानी के द्वारा २-२ रत्ती की गोलियां बनावें । करके उसके बराबर त्रिकुटे का चूर्ण मिलावें।। ____ इसे २ रत्ती की मात्रानुसार सेवन करने से इनके सेवन से ज्वरातिसार, अतिसार, छ: अग वात (अधरंग) और कम्पवात का नाश | प्रकार की संग्रहणी और रक्तातिसारका नाश होता है। होता है , नोट- इसमें कोई कोई १ भाग सुहागा भी [९६४] कर्णरोगहरो रसः डालते हैं। (र. र. स. । अ. २३) [९६६] कर्पूराद्यो रसः वज्रवैक्रांतविमलतुत्थनागविषान्वितैः । (र. रा. सु. । प्रमे.) तुल्यपारदगंधाश्ममाक्षिकैः कज्जलीकृतः ॥ कर्पूरगीउन्मत्तबीजं जातीफलं तथा। लशुनाकशिग्रूणामरण्या मूलकस्य च । मृतानं मृतलोहश्च पुनागरसं तथा ॥ पृथग्रसैः कदल्याश्च सप्तधा परिभावयेत् ॥ एलापुन्नागधान्याकं विषं व्योषलवंगकम् । एवं सुपिष्ट्वा बल्लेन सेवितः कर्णरोगनुत् ॥ । तालीसपत्रं पत्रं च जयाबीजं त्वचं तथा ।। हीरे की भस्म, वैक्रान्त भस्म, विमल (रूपा अकर्करं नागवला तुल्यांशेन समन्वितम् । मक्खी) भस्म, शुद्ध नीलाथोथा, सीसा भस्म, शुद्ध | चूर्ण कृत्वा सितातुल्यं दत्वा सेवेद्यथा बलम्॥ मीठातेलिया, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और सोना- इवासं प्रमेहं च सरक्तपित्तमक्खी भस्म बराबर २ लेकर प्रथम पारे और। प्रस्वेदवातंबहुसन्निपातम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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