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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-रसप्रकरणम् (२८५) क्षिप्त्वा मृदुपुटे पक्त्वा भावयेद्धातकीरसैः। इसे ४ माशे की मात्रानुसार रात्री के समय काकोलीमधूकं मांसी बलात्रयविषगुदम् ॥ ! मिश्री, आमला और विदारीकन्द के १। तोला द्राक्षा पिप्पलि बंदाकं वरी पर्णीचतुष्टयम् ।। चूर्ण तथा १। तोला घी में मिलाकर खाकर ऊपर परूषकं कसेरुश्च मधुकं वानरी तथा ॥ से १० तोला दूध पिया जाय तो अत्यधिक कामभावयित्वा रसैरेषां शोषयित्वा विचर्णयेत। | वृद्धि होती है एवं अत्यन्त सम्भोग से भी कुछ एलात्वक् पत्रकं मांसी लवंगागरु केशरम् ॥ हानि नहीं होती। मुस्तं मृगमदं कृष्णा जलं चन्द्रश्च मिश्रयेत् । [९५०]कपर्वको रसः (र. र. । र. पि.) एतच्चूर्णेःशाणमितैःरसं कन्दर्पसुन्दरम् ॥ मृतं वा मूर्छितं सूतं कार्पासपुष्पजैवैः। खादेच्छाणमितं रात्रौ सिताधात्रीविदारिका । मर्दयेद्दिनमेकन्तु तेन पूर्या वराटिका ॥ एतेषां कर्षचूर्णेन सस्पिष्कर्षेण सम्मितम ॥ | निरुध्य चान्धमृषायां भाण्डे रुदुवा पुटे पचेत । तस्यानु द्विपलं क्षीरं पिबेत्सुखितमानसः। उद्धृत्य चूर्णयेच्छलक्ष्णं मरिचेर्द्विगुणैः सह ।। रमणीरमयेद्वहीन हानि कापि गच्छति ॥ | गुञ्जकैकं घृतैर्लेय रक्तपित्वं नियच्छति । ___ शुद्ध पारा, हीरकी भस्म, सीसेकी भस्म, कपर्दकरसोनामासाध्यं च साधयत्यलम् ।। मोती भस्म, चांदी भस्म, सोने की भस्म, मिश्री उदुम्बरफलं पक्कं घृतैःपाच्यं सितायतम । और अभ्रक भस्म । सब समान भाग लेकर कपास भक्षयेन्मरिचयुक्तमनुस्याद्रक्तपित्तनुत । और बिट् खदिर (खैर भेद) के रस में घोटे । फिर ___रस सिंदूर को १ दिन पर्यंत कपास के इसमें मूंगा और शुद्ध गन्धक का चूर्ण २॥ २॥ फूलों के रस में घोटकर कौड़ियों के अन्दर भर दें तोला मिलाकर खरल करके हरिन के सींग में भर और अन्धमूषा में बन्द करके उस मूषा को किसी कर उसका मुंह बन्द करके लघु पुट में फूंकें, फिर बरतन के अन्दर बन्द करके पुट लगादें । फिर उसे निकाल कर धायके फूल, काकोली, महुआ, स्वांग शीतल होने पर निकाल कर दो गुनी काली जटामांसी, खरैटी, कंधी, गंगेरन, शुद्ध मीठातेलिया, मिर्चों के साथ मिलाकर खूब महीन खरल करें। इंगुदी (हिंगोट), दाख, पीपल, बन्दा, शतावर, इसमें से १ रत्ती दवा धी के साथ खाकर शालपर्णी, पृष्टपर्णी, मुद्गपर्णी, माषपणां, फालसा, उसके ऊपर गूलर के पक्के फलों को काली मिर्च कसेरू, मुल्हैठी और कौंच के बीजों के रस या और मिश्री के साथ घी में पकाकर खाने से काथ की भावना देकर सुखाकर चूर्ण करें । दुस्साध्य रक्तपित्त का नाश होता है। इसके पश्चाद् इसमें निम्न लिखित औषधियों का | [९५१] कफकुंजरो रसः चूर्ण मिलावें। (यो. चि. म. । अ. ३) इलायची, दालचीनी, तेजपात, जटामांसी, | नागं पारदसंयुतं समरिच सवत्सनागं शुभम् । लौंग, अगर, केसर, नागरमोथा, कस्तूरी, पीपल, | देवालीरसभावना मुनिमिता कच्चरिकाकल्लयोः।। सुगन्ध बाला और कपूर प्रत्येक का चूर्ण ४-४ माशे।। देयं वल्लमितं महौषधरसैः सनागवल्लीदलैः। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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