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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकारादि क्वाथ गिलोय, सोंठ, आमला, असगन्ध और गोखरू, इनका क्वाथ वातव्याधि, शूल और मूत्रकृच्छ्र को ष्ट करता है । [१४] अमृतादि क्वाथः (६) ( वृ० नि० २०, यो. र । शीतपित्त ) अमृत रजनीनिम्बधन्वायासैः पृथक् शृतम् । प्राणिनां प्राणदं चैतच्छीतपित्तसमाचरेत् ॥ गिलोय, हल्दी, नीमकी छाल और धमासा । इनमें से प्रत्येकका क्वाथ शीतपित्त से मरते हुवे रोगियों के लिए प्राणदान देनेवाला है । [१५] अमृतादि क्वाथः ( ७ ) ( वृ० नि० र ० ज्वरा० ) अमृतानागरं मुस्तानिशाह्वययवासकैः । वातज्वरे प्रदातव्यः कृष्णयुतकपायकः ॥ गिलोय, सोंठ, नागरमोथा, हल्दी और जवासा । इनके क्वाथ में पीपलका चूर्ण डालकर पीने से ज्वर का नाश होता है । [१६] अमृतादि हिमः ( वृ० नि० २० ज्वरा० ) अमृताया हिमः प्रातः ससितः पैत्तिकं ज्वरम् । वासायाश्च तथा कासरक्तपित्तज्वरान् जयेत् ॥ गिलोय के शीत कषायमें मिश्री मिलाकर प्रातः काल सेवन करनेसे पैत्तिक ज्वर नष्ट होता है । एवं वासा (अडूसा) का शीतकषाय सेवन करने से कास, रक्तपित्त और ज्वरका नाश होता है। [१७] अमृतादि क्वाथ : ( ८ ) ( वृ० नि० २०, बं० से० । ज्वरा० ) अमृतादशमूलीभ्यां साधितं विधिवञ्जलम् । सन्निपातज्वरं हन्यात्त्रयोदशविधं नृणां ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) गिलोय और दशमूलका क्वाथ १३ प्रकारके सन्निपातों का नाश करता है । [१८] अमृतादि क्वाथः ( ९ ) ( हा० सं० ) अमृतापर्पटी धात्रीकाथः पित्तज्वरं हरेत् । गिलोय, पर्पटी और, आमला इन का क्वाथ पितज्वरा नाश करता है । [१९] अमृतादि क्वाथः (१०) ( वृ० नि० २० । रक्तपि ० ) अमृता मधुकश्चैव खर्जूरं गजपिप्पली । काथः क्षौद्रयुतो ह्येष रक्तपित्तविकारनुत् ॥ गिलोय, मुलैठी, खजूर और गजपीपल । इनका क्वाथ शहद डालकर पीनेसे रक्तपित्तका नाश होता है । [२०] अमृताष्टकः ( भा० प्र०, भै. र०, च. द. । ज्वरा० 1 ) अमृताकटुकारिष्टपटोल घनचन्दनम् । नागरेन्द्रयवं चैतदमृताष्टकमीरितम् ॥ कथितं सकणाचूर्ण पिलमज्वरापहम् । हल्लासारोचकच्छर्दि तृष्णादाहनिवारणम् ॥ गिलोय, कुटकी, नीमकी छाल, पटोलपत्र, नागरमोथा, चन्दन, सोंठ और इन्द्रजौं । इस अमृताष्टक क्वाथ में पीपल का चूर्ण डाल कर पीने से पित्तकफ-ज्वर, उबकाई, अरुचि, छर्दि, तृषा और दाहका नाश होता है । [२१] अम्बष्ठादिगणः ( सु० सं. सू. अ. ३८ ) अम्बष्ठाधातकीकुसुमसमंगा कदवङ्गमधुकवि For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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