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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-आसवारिष्ट (२६९) - सोंठ के कल्क तथा बकरी के दूधसे सिद्ध तैलकी । यद्वहुलेन रसेन विपक्कम् । नस्य लेनेसे आंखके घाव, तिमिर, शुक्र (फूला) शिर | तैलमतल्पतुषोदकसिद्ध और पलकों का पकना आदि रोग नष्ट होते हैं। मारुतमस्थिगतं विनिहंति ॥ [८८७] केतकादि तैलम् केतकी, नागबला और अतिबलाके बहुतसे (वृ. नि. र; ग. नि; वृ.मा; वा. व्या.) क्वाथ और बहुतसी कांजी से सिद्ध किया हुआ केतकनागबलातिवलानां तेल अस्थिगत वायुका नाश करता है । अथ ककाराद्यासवारिष्ट प्रकरणम् [८८८] कनकारिष्टः (१) अासि ग्रहणीदोषमानाहमुदरं ज्वरम् । ___(च. सं. । चि. अ. १४). । हृत्पाण्डुरोगश्वयथुगुल्मवोंनिलग्रहान् ॥ नवस्यामलकस्यैकां कुर्याज्जर्जरितां तुलाम् । कासान्कफामयांश्चोग्रान्सर्वानेवापकर्षति । कुडवांश विडङ्गानि पिप्पली मरिचानि च ॥ वलीपलितखालित्यं दोषजं तु व्यपोहति ।। पायमल विपल्याः क्रम चयचित्रको कुटे हुवे नवीन आमले ६। सेर, बायमञ्जिष्ठैल्वालुकं रोधं पलिकान्युपकल्पयेत् ॥ बिडंग, पीपल और कालीमिर्च २०-२० तोले, | पाठा, पिप्पलीमूल, सुपारी, चव, चीता, मजीठ, कुष्ठं दारुहरिद्रां च सुराहूं सारिवाद्वयम् ।। इन्द्राहूं भद्रमुस्तञ्च कुर्याद्दर्धपलोन्मितान् ।। । | एलबालु (एलवा) और लोध प्रत्येक ५-५ तोला । | कूठ, दारु हल्दी, देवदारु, दो प्रकारकी सारिया, चत्वारि नागपुष्पस्य पलान्यभिनवस्य च ।। इन्द्रयव और नागरमोथा प्रत्येक २॥ २॥ तोला द्रोणाभ्यामम्भसो द्वाभ्यां साधयित्वाऽवतारयेत् | और नवीन नागकेसर २० तोला लेकर सबको पादावशेषे पूते च शीते तस्मिन्समावपेत् ॥ |६४ सेर पानीमें पकावें। जब चौथा भाग शेष मृद्वीकाद्वयाढकरसं शीत नियूहसमितम् ॥ रह जाय तो छान कर ठंडा होने पर उसमें मुनक्का शकरायाश्च शुद्धाया दद्याद्विगुणितां तुलाम् । का क्वाथ १६ सेर, उत्तम खांड १२॥ सेर, कुसुमस्वरस्यैकमर्धप्रस्थं नवस्य च ॥ नवीन शहद १ सेर, दालचीनी, इलायची, नागरस्वगेलाप्लवपत्राम्बुसेव्यक्रमुककेसरान् । मोथा, पतरज (तेजपात) सुगन्धबाला, खस, चूर्णयित्वा तु मतिमान्कार्षिकानत्र दापयेत् ॥ सुपारी और नागकेसर । प्रत्येकका १०-१। तोला तत्सर्व स्थापयेत्पक्ष शुचौ च घृतभाजने।। | चूर्ण मिलाकर पवित्र, घृतसे चिकने और खांड प्रलिप्ते सर्पिषा किंचिच्छर्करागुरुधुपिते ॥ तथा अगरसे धूपित बरतनमें संधान करके १५ पक्षार्ध्वमरिष्टोऽयं कनको नाम विश्रुतः। दिन तक रक्खा रहने दें। पेयः स्वादुरसो हृद्यः प्रयोगाद्भक्तरोचनः । इसके पश्चात् निकालकर छान लें और १ केतकिमूलं बलातिबलानां-(ग. नि) । सुरक्षित रखें । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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