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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कामादि-तैल (२६१) गिलोय, बाबची, सोमराट् (बाबचीभेद्र) पवांड़, का दूध, चीता, भांगस, हल्दी, मीम तेलिया और कुस्तुम्बरु, भांगरा, मुल्हैठी, सुपारी, कुटकी, कपूर- गोमूत्रसे पका हुआ तैल विसर्प, विस्फोटक और कचरी, दारुहल्दी, निसोत, पभाक, पीपलामूल, | विचर्चिका का नाश करता है। अगर, पोखरमूल, कपूर, कायफल, जटामांसी, | [८५७] करवीरतैलम (१) मुरामांसी, इलायची, बांसा और हैड़। प्रत्येक (च. सं. चि. अ. ७) ११-१। तोला। श्वेवकरवीरपल्लवसूलत्वग्वत्सविडंगः । यह तेल १८ प्रकारके कुष्ठ, प्रन्थि और | कुष्ठार्कमूलसर्षपशिग्रुत्वमोहिणी कुटुका ।। मजागत कुष्ठ और जोड़ोंका गल जाना, मांसका | | एतैस्तैलं साध्य कल्वैर्यादांशिकैगेवां मूत्रम् । दत्वा तैलचतुर्गुणमभ्यंगः कुष्ठकण्डूमः ।। बढ़ जाना, नाक, कान और मुखका विकृत हो जाना, त्वचाका मेंढककी त्वचाके समान हो जाना, ___ सफेद कनेर के पत्ते और उसकी जड़की छाल, इन्द्रजौ, बायबिडंग, कूठ, आककी जड, सफेद कोढ़, लाल कोढ़, विपादिका, पामा, विस्फो सरसों, सहजनेकी छाल और कुटकी । इन सब टक, नीली, कृमि, वृद्धि, दाद, मसूरी, किटिभ, चीजों को समान मात्रा में मिलाकर तेलसे चौथाई लाल चकते और औदुम्बर, पद्मकुष्ठ, महापद्मकुष्ठ, चौथाई लें । इस कल्क और चार गुने गो-मूत्रके गलगण्ड, अर्बुद, गण्डमाला, भगन्दर और वातज, साथ पकाया हुआ तैल कोढ़ और खुजली का पित्तज, कफज, तथा द्वंदज और सन्निपातज आदि | नाश करता है। सब प्रकारके कुष्ठों का नाश करता है। [८५८] करवीरसेलम् (२) [८५५] करादि तैलम् (१) (च. सं. चि. अ. ७; यो. र.) (शा. ध. । म. खं अ. ९) श्वेत कस्वीरसो गोत्रं चित्रको गिन्य। करंजभित्रको जातीं करवीरश्च पाचितम्। कोष तैलयोगाः सिद्धोऽयं सम्मो मिपजाम् ॥ तैलमेभिद्रुतं हन्यादभ्यंगादिंद्रलप्तकम् ॥ ___ सफेद कनेरका रस, गोमूत्र, चीता और वास चमली । इनस | बिडंगसे यथा विधि तैल पकावें । पकाया हुआ तेल लगानेसे इन्द्र लुप्त (गञ्ज-बालों यह तैल कुष्ठमें अत्युपयोगी है। का गिर जाना) नष्ट होता है। [८५६] करक्षादि तैलम् (२) [८५९] करवीरतेलम् (३) (मै. र. कुष्ठे) श्वेतकरवीरमूलं विषांशकं साधितं गोमूत्रे । ___(यो. र. । विस.) चर्मदलसिध्मपामाविस्फोटकृमिकिटिमजिसम्।। करअसप्तच्छदलालीका सफेद कनेरकी जड और मीठा तेलिना दोनों स्नुपर्कदुग्धानलभृङ्गराजैः। बराबर २ मिलाकर तेल से चौथाई भाग लें। इस तैलं निशाभूत्रविविपक्कं कल्क और गोमूत्र के साथ पकाया हुआ तैल विसर्प विस्फोट विचचिंकानम् ॥ | चर्मदल, सिध्म, पामा, विस्फोटक, कृमि और किलिकरंजवा, सतौना, कलहारी, सेहुंड और आक । भका नाश करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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