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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-अवलेह (२४९) - आमवात, प्रदर, बंध्यत्व (वांझपना) और अण्डवृद्धि । त्रिकुटा, चातुर्जात (दालचीनी, तेजपात, का नाश होता है। * नागकेसर, इलायची) त्रिफला, लौंग, पीपल, अगर, [८१७] केशरपाकः (यो. र.। उ.खं.) चन्दन, तालमखाना, आकरकरा, जायफल, कौंचके व्योष चतुर्जातफलत्रिकं च बीज, मोचरस, खरैटी, आसगंध, गोखरू, मूसली, लवङ्गकृष्णागुरु चन्दनं च। बायबिडंग, समन्दर सोख, विषपञ्जर, चमेलीके फूल इस्खाज करहाटकं च और कंकु बीज प्रत्येक १ भाग, केसर २० भाग, __ जातीफलं मर्कटिकाफलं च ॥ कस्तूरी १६ वां भाग, खांड ४ भाग । यथा विधि शाल्मलिनिर्यासपलाश्वगन्धा पाक बनाकर उसमें रांग भस्म, अम्रक भस्म, पारद गोक्षुरवीजं मुसली कृमिघ्नम् । | (रससिन्दूर) कान्त लोह भस्म और ताम्रभस्म १२समुद्रशोषं विषपञ्जरं च १२ भाग तथा २०० नग सोनेके वर्क और २०० पुष्पं सुजात्युद्भवकङ्कचीजम् ॥ चांदीके वर्क तथा ८ भाग शुद्ध भांग मिलावें। सर्वैः समं योज्यं सुकुङ्कुम च इसमें से प्रति दिन प्रातःकाल जायफल के मुचूर्णितं विंशति भागयुक्तम् । | बराबर सेवन करनेसे वीर्य वृद्धि और समस्त व्याकस्तूरिका पोडशभागचूर्णम् धियों का नाश होता है। एवं अत्यन्त कामशक्ति खण्डं चतुर्भागयुतं विपकम् ॥ बढ़ती है। यह समस्त वातव्याधि, प्रबल वातरक्त, वङ्ग रसेन्द्रं गगनं सुलोहं अस्थिरोग, शिरोगेग और संधिरोग नाशक है। कान्तं हि तानं रविभागयुक्तम् । इसके सेवन से वृद्ध भी तरुण के समान हो जाता दलानि हेम्नो द्विशतानि दत्वा । है। एवं आयु, आरोग्य, बल और कान्तिकी वृद्धि तथैव देयानि च राजतानि ॥ होती है। एकत्र सर्व विनिधाय वैद्यो [८१०] कौंचपाकः (यो. चि. म. अ. १) जयाष्टभाग विदधीत लेहम् । पचेद्विप्रस्थं कपिकच्छुबीजं जातिफलप्रमाणेन भक्षयेत्प्रातरुत्थितः॥ उष्णोदके(१)यामचतुष्टयञ्च । वीर्यवृद्धिं करोत्येष सर्वव्याधिविनाशनः। तान्धर्षयेद्वस्त्रदृढ़े सुगाढ़ शतश्च रमते स्त्रीणां कामतुल्यो भवेन्नरः॥ यावद्भवेनिर्मलनिस्तुषं च ॥ सर्वान्वातामयान्हन्ति प्रवृद्धं वातशोणितम्। छायाविशुष्कं च तदेव चूर्ण अस्थिरोगं शिरोरोगं सन्धिरोगं च नाशयेत् ॥ क्षीरं क्षिप द्रोणसपादशेषम् । अस्य सेवनमात्रेण वृद्धोऽपि तरुणायते। दद्यात् घृतपस्थयुगश्च तस्मिन् धन्यं यशस्करं सम्यगायुरारोग्यवर्द्धनम् ॥ । विपाचयेन्मन्दहुताशने च ॥ काश्मीरकावलेहोऽयं बलकान्ति विवर्द्धनः ॥ आकलकं नागरदेवपुष्पं __ * इसकी पाक विधि शास्त्रोक्त पाक विधि | ___ गोक्षीरकं कुंकुमहंसपाकम् । विरुद्ध है । (अनु०) सारं कुबेरं धन तुर्यजातं For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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