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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-अवलेह (२४३) लेकर प्रत्येकको ३२-३२ सेर पानीमें पृथक् पृथक् , पतरज, दालचीनी, इलायची, नागकेशर, बरना, पकाकर चौथा भाग शेष रहने पर छान लें और | गिलोय और फूल प्रियंगु; इनमेंमे प्रत्येकका ११-१॥ फिर सबको एकत्र करके ३ सेर आध पाव गुड़ | तोला चूर्ण मिलावें। मिलाकर पुनः पकाकर गाढ़ा करें। फिर ठण्डा | इसे सेवन करनेसे २० प्रकारके वातज, करके उसमें १ सेर शहद, ३० तोला बंसलोचन | पित्तज, कफज और सन्निपातज प्रमेह, मूत्राधात, पीपल, दालचीनी, तेजपात और इलायची प्रत्येकका | पथरी और प्रबल अरुचिका नाश होता है तथा चूर्ण १०-१० तोला मिलाकर रखे। बल और पुष्टि की वृद्धि होती है। इसे अग्नि बलानुसार सेवन करनेसे श्वास, खांसी, ज्वर, हिचकी और तमक स्वासका नाश [८०४] कूष्माण्डकावलेहः (१) (वृ. नि. र. रक्तपि.) होता है। [८०३] कुशावलेहः (भै. र. प्रमे.) । पुराणं पीनमानीय कूष्मांडस्य फलं दृढम् । | तद्वीजाधारबीजत्वशिराशून्यं च कारयेत् ।। कुशःकासो वीरणश्च कृष्णेक्षुःखग्गडस्तथा। एषां दशपलान् भागाञ्जलद्रोणे विपाचयेत् ।। ततोतिसूक्ष्मखंडानि कृत्वा तस्य तुलां पचेत् । अष्टभागावशेषन्तु कषायमवतारयेत् । गोदुग्धस्य तुलायुग्मे मंदाग्नौ चालयेन्छनैः ।। खण्डप्रस्थं समादाय लेहवत्साधुसाधयेत् ॥ शर्करायास्तुलाद्धं च गोघृतं प्रस्थमात्रकम् । अवतार्य ततःपश्चाच्चूर्णानीमानि दापयेत् । प्रस्थार्धमाक्षिकं चापि कुडवं नारिकेरतः ॥ मधुकं कर्कटीबीजं कर्कास्त्रपुषं तथा ।। प्रियालफलमजानां द्विपलं त्रिखुरीपलम् । क्षिपेदेकत्र विपचेल्लेहयेत्साधुसाधयेत् ।। शुभामलकपत्राणि त्वगेलानागकेशरम् । वरुणोमृताप्रियंगुश्च प्रत्येकमक्षसम्मितम् ।। | भिषभिषक्त्वमालोक्य ज्वलनादवतारयेत् । प्रमेहान् विंशति हन्ति मूत्राधातांस्तथाश्मरीः। काष्ठौषध्यः क्षिपेदेषां चूर्ण तानि वदाम्यहम् ।। वातिकान् पैत्तिकांश्चापि, एकोक्षः शतपुष्पाया अथ जीरो यवानिका श्लैष्मिकान् सान्निपातिकान् ॥ | गोक्षुरः क्षुरकः पथ्या कपिकच्छ्रफलानि च ॥ | सप्तमी त्वक्च मर्वेषामेषामक्षयुग पृथक् । हन्त्यरोचकमत्युग्रं बलपुष्टिकरं परम् ॥ कुशा, कांस, खस, काली ईखकी जड और धान्यक पिप्पलीमुस्तमश्वगंधा शतावरी ॥ खग्गड (ईख विशेष) की जड । सब चीजें बराबर | ताल | तालमूली नागबला वालकं पत्रकं शटी। बराबर मिलाकर ४० तोला लेकर ३२ सेर पानी | जातीफलं लवंगं च सूक्ष्मैलाबृहदेलिकान् ॥ में पकावें और आठवां भाग शेष रहने पर छानलें. शृङ्गाटकं पर्पटकं सर्व पलमितं पृथक् । इसके पश्चात् उसमें १ सेर खांड मिलाकर पुनः / चंदनं नागरं धात्रीफलं चापि कसेरुकम् ॥ पकावें और जब लेहके समान हो जाय तो अग्नि | प्रत्येकं पंचकर्षाणि चोत्तायैतानि निःक्षिपेत् । से नीचे उतार कर उनमें मुल्हैठी, ककडीके बीज, पलद्वयमुशीरस्य पलान्यष्टोषणाणि (1) च ।। पेंठेके बीज, खीरेके बीज, बंसलोचन, आमला, | १ मरिचानि चेति साधीयान् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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