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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३०) भारत-भैषज्य रत्नाकर [७५७] कारव्यादि गुटिका (यो. र. । अरु.) [७६०] कासहरीवटी (व्या. यो. सं.) कारव्यजाजिमरिचं द्राक्षावृक्षाम्लदाडिमम् । पिप्पली पिप्पलीमूलं वासा द्राक्षा हरीतकी । सौवर्चलं गुणः क्षौद्रमेषां कार्या वटी शुभा ॥ मधुना वटिका चैषा पश्चकासनिवर्हिणी ।। बदरास्थिमिता साऽऽस्ये धार्याऽरोचकनाशिनी॥ पीपल, पीपलामूल, बासा, दाख और हैड़। कलौंजी, जीरा, काली मिर्च, दाख, इमली, | सबका समान भाग चूर्ण लेकर शहदके साथ अनारदाना, साँचल (काला नमक) गुड़ और शहद | गोलियां बनावें । इनमेंसे चूर्ण योग्य औषधियोंका चूर्ण करके फिर इनके सेवनसे पांच प्रकारकी खांसी नष्ट सबको एकत्र मिला कर बेरकी गुठलीके बराबर | होती है। गोलियां बनावें। [७६१] कासादिहरीवटी (व्या. यो. सं.) ___ इन्हें मुंहमें रखनेसे अरुचि दूर होती है। । भारंगी शुण्ठयतिविषा पथ्यानां मधूना वटी। [७५८] कासिमबागुटी खादेव सायं प्रभाते च कासश्वासविनुत्तये ।। (वृ. नि. र. । संग्रह., वै. र. अशो.) भारंगी, सोंठ, अतीस और है। प्रत्येकका कार्पासमजा लशुन खर्जिकाक्षारहिंगुकम् ।। | चूर्ण बराबर लेकर शहदमें मिलाकर गोलियां बनावें। घृतेन कोलमात्रा हि गुटिकाों विनाशिनी ।। इन्हें सुबह और शाम खानेसे खांसी और श्वासका नाश होता है। विनौलेकी गिरी, ल्हसन, सज्जीखार और हींग। [७६२] कासीसादिगुटी (वृ. नि. र. । मुख.) सब समान भाग लेकर पीसकर घीके साथ बेरके कासीसं हिंगु सौराष्ट्री देवदारु समं जलैः। बराबर गोलियां बनावें । इनके सेवनसे बवासीरका नाश होता है। | गुटिको धारयेद्धतकृमिशूलहरां पराम् ॥ [७५९] कासकर्तरीगुटिका कसीस, हींग, फिटकरी और देवदारु बराबर बराबर लेकर पानीसे गोलियां बनावें । (वृ. यो. त.। ७८ त.) इन्हें दातोंमें रखनेसे दांतोंके कृमि और शूल रंगं कृष्णाभयाक्षारं रूपमार्गी क्रमोत्तरा। तत्समं खादिरं सारं बब्बूलकाथभावितम् ॥ आदिका नाश होता है। एकविंशतिवारांश्च मधुनाऽक्षमितागुटी।। [७६३] कुबेराक्षवटी (वृ. नि. र. । शूल.) कासं श्वासं क्षयं हिका हन्त्यत्येषा कासकर्तरी ॥ कर्षेकं च कुबेराक्षं कक्कं च महौषधम् । बंगभत्म १ भाग, पीपल २ भाग, हैड़ ३ | " सौवर्चलं च कर्षाद्ध कांधे भृष्टहिंगुकम् ॥ भाग, यवक्षार ४ भाग, बांसा ५ भाग, भारंगी ६ | राष्ट्र मूलरसनव रसानस रसन वा । भाग और खैर सार २१ भाग। सबको बबूलके पिष्ट्वा सर्व प्रयत्नेन खछांगारे विपाचयेत् ॥ काथकी २१ भावना देकर शहदके साथ ११-१॥ | भुक्त्वा विनाशयेचैव शूलमष्टविधं तथा ॥ तोलाकी गोलियां बनावें। लताकरञ्ज और सोंठ १।-११ तोला, काला इनके सेवनसे खांसी, श्वास, यक्ष्मा और | नमक ७॥ माषा, और भुनी हुई हींग ७॥ माषा। हिचकीका नाश होता है। सबको सहजने या ल्हसनके रसमें घोटकर For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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