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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-चूर्ण (२११) त्रिकुटे ( सोंठ, मिर्च पीपल ) का चूर्ण, गुड़ | आर्द्रकखरसक्षौद्रेलियात् कफविनाशनम् । धीमें मिलाकर निरन्तर सेवन करनेसे खांसी नष्ट | शूलानिलारुचिच्छर्दिकासश्वासक्षयापहम् ॥ होती है। कायफल, पोखरमूल, काकडासींगी, नागर[६७८] कटुञयादिचूर्णम् (बृ. नि.र. कासे) | मोथा, त्रिकुटा और कपूरकचरी । इन सब का कटुत्रयं पावकदेवदारुराना अथवा एक एक औषधिका महीन चूर्ण करके विडंगत्रिफलाऽमृतानाम् । अदरकके रस और शहदमें मिला कर चाटनेसे चूर्ण समाशं सितया समेतं | कफ, शूल, वायु, अरुचि, वमन, खांसी, श्वास कासंजयेद्विष्णुगदेव दैत्यान् ॥ । | और क्षय का नाश होता है । त्रिकुटा, चीता, देवदारु, रास्ना, बायबिडंग, [६८२] कट्फलादिः (३) (भा. प्र. । अति.) त्रिफला और गिलोय। सब चीजें समान भाग | कट्फलं मधुकं लो| त्वग्दाडिमफलस्य च । लेकर चूर्ण करें। सतण्डुलजलं चूर्ण वातश्लेष्मातिसारनुत् ॥ इसे मिश्रीमें मिलाकर सेवन करनेसे खांसीका ___कायफल, मुल्हैठी, लोध और अनारके फल के नाश होता है। छिलके (नासपाल) इनका चूर्ण चावलों के पानी के [६७९] कट्फलादिचूर्णम् (१) | साथ सेवन करनेसे वातकफज अतिसार नष्ट (शा. घ. म. खं अ. ६) होता है। कट्फलं मुस्तकं तिक्ता शुंठी *शृंगी च पौष्करम् [६८३] कणाधं चूर्णम् (१) चूर्णमेषां च मधुना शृंगबेररसेन वा ॥ (वृ. नि. र. अजी.) लिहेज्ज्वरहरं कंठयं कासश्वासारुचीर्जयेत् ।। कणासिंधुशिवावहिचूर्णमुष्णेन वारिणा। वायु छर्दि तथा शूलं क्षयं चैव व्यपोहति पीतं प्रातः क्षुधा कुर्यात् पावकस्यापि दीपनम ___कायफल, नागरमोथा, कुटकी, सोंठ, काक- पीपल, सेंधानमक, हैड और चीता। इनका डासींगी और पोखरमूल। इनके चूर्ण को शहद | चूर्ण गरम पानीके साथ सेवन करनेसे क्षुधा वृद्धि या अदरकके रसमें मिलाकर सेवन करनेसे ज्वर, | और अग्निदीप्ति होती है। खांसी, श्वास, अरुचि, वायु, वमन, शूल और [६८४] कणाचं चूर्णम् (२) क्षयका नाश होता है। यह चूर्ण कण्ठके लिये (यो. र. । दन्तरो.) भी हितकारी है। कणासिंधूत्थजरणचूर्ण तूर्ण व्यपोहित । [६८० कट्फलादिचूर्णम् (२) घर्षणाद्दन्तचाश्चल्यव्यथाशोथास्त्रसंस्त्रवान् ॥ (शा. ध. म. ख अ. ६) ____ पीपल, सेंधानमक और जीरा । इनका चूर्ण कट्फलं पौष्करं शृङ्गी मुस्ता त्रिकटुक शठी। बना कर मंजन करनेसे दांतोंका हिलना, दर्द, समस्तान्येकशो वापि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ॥ मसूढ़ोंकी सूजन और उनसे रक्त जाना आदि रोग * शठीति पाठान्तरम् । नष्ट होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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